भारत रत्न प्रणब मुखर्जी का राष्ट्रपति बनने तक का सफर…

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समाचार सच, नई दिल्ली (एजेंसी)। भारत रत्न प्रणब मुखर्जी के निधन पर पूरे देश में शोक की लहर है। राजनैतिक दलों के नेताओं से लेकर आम जनता उन्हें श्रद्धांजलि दे रही है।
राष्ट्रपति को महामहिम कहे जाने की रीति से ऐतराज करने वाले प्रणब मुखर्जी 2012 से 2017 तक भारत के राष्ट्रपति थे। उनका राजनीतिक जीवन 40 सालों से भी ज्यादा लंबा रहा है। कांग्रेस पार्टी में रहते हुए उन्होंने विदेश से लेकर रक्षा, वित्त और वाणिज्य मंत्री तक की भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय राजनीति को बहुत लंबे समय तक, बहुत करीब से देखा, हम एक बार उनकी निजी जिंदगी और राजनीतिक करियर पर नजर डाल रहे हैं।
प्रणब मुखर्जी का जन्म 11 दिसंबर, 1935 को पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में एक छोटे से गांव मिराती के एक साधारण से परिवार में हुआ था। उनके पिता कामदा किंकर मुखर्जी स्वतंत्रता सेनानी थे और उनकी मां का नाम राजलक्ष्मी था। प्रणब मुखर्जी के पिता भी कांग्रेसी नेता थे और आजादी की लड़ाई में कई बार जेल गए।
प्रणब मुखर्जी ने स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद कोलकाता यूनिवर्सिटी इतिहास और राजनीति शास्त्र में ग्रेजुएशन किया था और लॉ की पढ़ाई भी की थी। उन्होंने सबसे पहले बतौर कॉलेज टीचर अपना करियर शुरू किया लेकिन नेता पिता की संतान होने के चलते वो राजनीति से दूर नहीं रहे और 1969 में चुनकर राज्यसभा में आ गए। इस तरह उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत हुई।
उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के मार्गदर्शन में काम किया. 1973-74 में उन्हें उद्योग, जहाजरानी व परिवहन से लेकर इस्पात व उद्योग उपमंत्री और वित्त राज्यमंत्री बनाया गया।
1982 में प्रणब मुखर्जी इंदिरा गांधी के कैबिनेट में वित्तमंत्री बने। इसके बाद 2012 तक कांग्रेस में रहने के दौरान कांग्रेस की सरकारों के कार्यकालों में उन्होंने वाणिज्य मंत्री, विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री जैसी अहम भूमिकाएं निभाईं। वो दो बार विदेश मंत्री बने- 1995 से 1996 तक फिर 2006 से 2009 तक। मुखर्जी 1991 से 1996 तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी रहे।
2012 में उन्होंने 25 जुलाई को भारत के 13वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली और 2017 तक देश के राष्ट्रपति के रूप में अपनी सेवा देते रहे. संवैधानिक नियम के मुताबिक, राष्ट्रपति चुनाव लड़ने से पहले उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था।
पूर्व राष्ट्रपति ने कूटनीतिक स्तर पर भी अहम भूमिकाएं निभाईं। मुखर्जी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक और अफ्रीकी विकास बैंकों के संचालक मंडलों में रहे। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा से लेकर गुटनिरपेक्ष विदेश मंत्रियों के सम्मेलन सहित कई सम्मेलनों में भारत का नेतृत्व किया।

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साभार: एनडीटी इंडिया

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