हर्षाेल्लास का माहौल तैयार करता है दीपावली का त्यौहार

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समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। डॉक्टर आचार्य सुशांत राज का कहना हैं की भारत पर्वों का देश है और कार्तिक महीना तो इस देश के लिए सबसे बड़ा त्यौहार लेकर आता है। दीपों का यह त्यौहार दीपावली के नाम से हम सबके बीच हर्षाेल्लास का माहौल तैयार करता है। दीपावली भारतीय संस्कृति के सबसे रंगीन और विविधता भरे पर्वों में से एक है। इस दिन पूरे भारत में दीयों और रोशनी की अलग छटा देखने को मिलती है। दीपावली एक ऐसा त्यौहार है जिसका बड़े-बूढ़े सभी बेसब्री से इंतजार करते हैं. कहते हैं कलयुग में माता लक्ष्मी ही ऐसी देवी हैं जो भौतिक सुखों की प्राप्ति कराती हैं। ऐसे में दीपावली का महत्व सर्वाधिक हो जाता है। आज पैसा सब रिश्तों नातों से बड़ा है। असल मायनों में अगर देखा जाए तो इंसान हमेशा कुछ पाने के लिए ही पूजा करता है और कलयुग में पैसे की देवी मां लक्ष्मी की पूजा करना भी उसका ही स्वार्थ है। यूं तो शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान राम 14 सालों का वनवास पूरा करके अपने नगर अयोध्या लौटे थे तो उनके आगमन पर नगरवासियों ने घी के दीपक जलाकर अपनी खुशियां जाहिर की थी पर इस पर्व के साथ जुड़ी अन्य कहानियों ने इस पर्व में मां लक्ष्मी की पूजा भी जरूरी कर दी। दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या को मनाई जाती है। दीपावली को असत्य पर सत्य की और अंधकार पर प्रकाश की विजय के रूप में मनाया जाता है। दीपावली मर्यादा, सत्य, कर्म और सदभावना का सन्देश देता है। दीपावली शब्द से ही मालूम होता है दीपों का त्यौहार. इसका शाब्दिक अर्थ है दीपों की पंक्ति। ‘दीप’ और ‘आवली’ की संधि से बने दीपावली में दीपों की चमक से अमावस्या की काली रात भी जगमगा उठती है। हिन्दुओं समेत सभी धर्मों के लोगों द्वारा मनाए जाने के कारण और आपसी प्यार में मिठास घोलने के कारण इस पर्व का सामाजिक महत्व भी बढ़ जाता है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ कथन को सार्थक करती है दीपावली।
दीपावली से जुड़ी कहानियां –
प्राचीन कथा के अनुसार दीपावली के दिन अयोध्या के राजा श्री रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। राजा राम के लौटने पर उनके राज्य में हर्ष की लहर दौड़ उठी थी और उनके स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दिए जलाए। तब से आज तक यह दिन भारतीयों के लिए आस्था और रोशनी का त्यौहार बना हुआ है।
कृष्ण के भक्तगण मानते है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दिए जलाए और इसके साथ इसी दिन समुद्र मंथन के पश्चात लक्ष्मी व धनवंतरि प्रकट हुए थे। जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही है।
दीपावली का त्यौहार पांच दिनों तक मनाया जाता है। सबसे पहले कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान धन्वंतरि का पूजन किया जाता है। इस दिन नए वस्त्रों और बर्तनों को खरीदना शुभ माना जाता है। अगले दिन यमराज के निमित्त नरक चतुर्दशी का व्रत व पूजन किया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। इसे हम छोटी दीपावली के नाम से भी जानते हैं।
तीसरे दिन अमावस्या को दीपावली का पर्व होता है जिसमें लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। अमावस्या की अंधेरी रात में दीयों की रोशनी शमां को रंगीन बना देती है। इसके अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। गोवर्धन पूजा में गोबर से गोवर्धन बनाया जाता है और उसे भोग लगाया जाता है। उसके बाद धूप-दीप से पूजन किया जाता है। अंतिम दिन भैया दूज के साथ यह पर्व खत्म होता है।
हर प्रांत या क्षेत्र में दीवाली मनाने के कारण एवं तरीके अलग हैं पर सभी जगह कई पीढ़ियों से यह त्यौहार चला आ रहा है। लोगों में दीवाली की बहुत उमंग होती है। लोग अपने घरों का कोना-कोना साफ़ करते हैं, नये कपड़े पहनते हैं। मिठाइयों के उपहार एक दूसरे को बांटते हैं, एक दूसरे से मिलते हैं। अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाई-चारे व प्रेम का संदेश फैलाता है।

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