समाचार सच, देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड आज लोकपर्व इगास (बग्वाल) की उल्लासमय छटा में डूबी हुई है। इस अवसर पर उत्तराखंड सरकार वरिष्ठ नागरिक कल्याण परिषद् के उपाध्यक्ष (दर्जा राज्यमंत्री) नवीन चन्द्र वर्मा ने प्रदेशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं दी हैं।
दर्जा राज्यमंत्री नवीन चन्द्र वर्मा ने कहा कि “इगास पर्व हमारी संस्कृति, परंपरा और सामूहिक एकता का प्रतीक है। यह पर्व हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखता है और समाज में भाईचारे व सद्भाव का संदेश देता है।”
उन्होंने आगे कहा कि लोकपर्वों का संरक्षण ही वास्तविक संस्कृति की रक्षा है। “आज की पीढ़ी को चाहिए कि वे आधुनिकता के साथ-साथ अपनी लोक परंपराओं का भी सम्मान करें और उन्हें आगे बढ़ाएं।”
वर्मा ने प्रदेशवासियों से अपील की कि वे इगास पर्व को परंपरागत रीति-रिवाजों के साथ परिवार और समुदाय के बीच मनाएं, ताकि उत्तराखंड की समृद्ध लोक संस्कृति आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित रह सके।
इगास: लोकसंस्कृति का उजियारा
उत्तराखंड में दीपावली को बग्वाल कहा जाता है और इसके 11 दिन बाद मनाया जाने वाला इगास पर्व लोकजीवन का अभिन्न हिस्सा है। इस दिन घरों की सफाई कर मीठे पकवान बनाए जाते हैं, देवी-देवताओं तथा पशुधन की पूजा की जाती है।
शाम को गांवों में भैलो नृत्य (मशाल नृत्य) खेला जाता है, जिसमें मशालें घुमाते हुए लोकगीतों की धुन पर नृत्य किया जाता है। इस पर्व में पटाखों की जगह पारंपरिक नृत्य, गीत और सामूहिक उल्लास ही इसकी असली पहचान हैं।
पर्व से जुड़ी लोककथाएं
इगास पर्व से जुड़ी दो प्रमुख लोककथाएं गढ़वाल में प्रचलित हैं। पहली कथा वीर सेनापति माधव सिंह भंडारी की है, जिनके युद्ध से लौटने के बाद दीपावली 11 दिन बाद मनाई गई थी।
दूसरी कथा के अनुसार, भगवान राम के वनवास से लौटने की सूचना पहाड़ों में देर से पहुंची थी, जिसके कारण वहां दीपावली 11 दिन बाद मनाई गई और इसे इगास नाम मिला।

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