करवा चौथ को देश के अन्य भागों में करक चतुर्थी के नाम से भी पुकारा जाता है। करवा यानि मिट्टी का एक प्रकार का बर्तन होता है जिसके द्वारा चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। अर्घ्य से मतलब चंद्रमा को जल देने से है। करवा चौथ की पूजा के दौरान करवा आवश्यक पूजन सामग्री में आता है। जिसे पूजा के बाद किसी ब्राह्मण या योग्य महिला को दान स्वरूप भेंट कर दिया जाता है।
करवा चौथ के दिन सुबह सूर्याेदय से पहले उठने का खास महत्व है। इसलिए प्रातः उठ जाएं और सरगी में मिला हुआ भोजन करें और खूब पानी पीएं। इसके बाद भगवान की पूजा करके निर्जला व्रत रहने का संकल्प लें। करवा चौथ के दिन स्त्रियां पूरे दिन जल-अन्न कुछ ग्रहण नहीं करतीं फिर शाम के समय चांद को देखने के बाद दर्शन कर व्रत खोलती हैं।
करवा चौथ का व्रत सभी सुहागिन औरतें अपनी पति की लम्बी आयु और सुखमय दाम्पत्य जीवन के लिए रखती है। इस साल करवा चौथ पर कुछ खास किस्म के शुभ योग बन रहे हैं तो आइए हम आपको करवा चौथ की महिमा तथा पूजन विधि के बारे में बताते हैं।
जाने करवा चौथ के बारे में
इस साल करवा चौथ 17 अक्टूबर (गुरुवार) को पड़ रहा है। करवा चौथ के दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और रात में चंद्रोदय के बाद ही अपना व्रत तोड़ती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन अगर सुहागिन औरतें व्रत रखें तो उनके पति की उम्र लंबी होती है और उनका गृहस्थ जीवन सुखमय व्यतीत होता है। ये व्रत सूर्याेदय से पहले ही शुरू हो जाता है और चांद निकलने तक रखा जाता है।
इस बार का करवा चौथ है खास
2019 का करवा चौथ का व्रत बेहद खास है क्योंकि 70 साल बाद करवा चौथ पर इस बार शुभ योग बन रहा है। इस बार रोहिणी नक्षत्र के साथ मंगल का योग हो रहा है जो करवा चौथ को अधिक मंगलकारी बना रहा है। ज्योतिषियों के अनुसार रोहिणी नक्षत्र और चंद्रमा में रोहिणी का योग होने से इस करवा चौथ पर मार्कण्डेय और सत्याभामा योग बन रहे हैं। अगर आप पहली बार करवा चौथ का व्रत रख रही हैं तो आपके लिए यह व्रत बहुत शुभ रहेगा।
ऐसे करें करवा चौथ की पूजा
करवा चौथ के दिन सुबह सूर्याेदय से पहले उठने का खास महत्व है। इसलिए प्रातः उठ जाएं और सरगी में मिला हुआ भोजन करें और खूब पानी पीएं। इसके बाद भगवान की पूजा करके निर्जला व्रत रहने का संकल्प लें। करवा चौथ के दिन स्त्रियां पूरे दिन जल-अन्न कुछ ग्रहण नहीं करतीं फिर शाम के समय चांद को देखने के बाद दर्शन कर व्रत खोलती हैं। पूजा के लिए शाम के समय एक मिट्टी की वेदी पर सभी देवताओं की स्थापना कर इसमें करवे भी रख दें। एक थाली में धूप, दीप, चन्दन, रोली, सिन्दूर रखें और घी का दीया जलाएं। चांद निकलने के एक घंटे पहले पूजा शुरु कर देनी चाहिए। इस दिन महिलाएं एक साथ मिलकर पूजा करती हैं। पूजा करते समय करवा चौथ की कथा जरूर सुनें या सुनाएं। चांद को छलनी से देखने के बाद अर्घ्य देकर चन्द्रमा की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद पानी पीकर व्रत तोड़े। इस दिन बहुएं अपनी सास को थाली में मिठाई, फल, मेवे और रुपये आदि देकर उनसे अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
करवा चौथ से जुड़ी कथा
प्राचीन काल में एक नगर एक साहूकार रहता था। साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी। एक बार करवा चौथ के दिन साहूकार की पत्नी, उसकी बेटी और सातों बहुओं ने करवा चौथ का व्रत रखा। शाम को साहूकार और उसके बेटे को खाना खाने आएं। उनसे अपनी बहन को भूखा नहीं देखा जा रहा था। उन्होंने अपनी बहन से भोजन करने को कहा लेकिन उसने मना कर दिया और बोली कि मैं चंद्रमा देखकर अघर्य देकर ही खाना खाऊंगी। उसके बाद सातों भाई नगर से बाहर निकल गए और दूर आग जला दी। जिससे साहूकार की बेटी को लगा कि चांद निकल गया और उसने अपना व्रत तोड़ दिया। इसके बाद उसका पति बहुत बीमार हो गया और घर का सारा धन बीमारी में खर्च हो गया। तब साहूकार की बेटी को अपनी गलती पता चली और उसने गणेश जी की विधि-विधान से पूजा की जिससे उसका पति ठीक हो गया और घर धन-धान्य से भर गया।
करवा चौथ का शुभ मुहूर्त:
तिथि: कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी
तारीख: 17 अक्टूबर
दिन: गुरुवार
पूजा मुहूर्त: शाम 5.50 से 07.05 बजे तक
पूजा मुहूर्त की कुल अवधि: 01 घंटा 15 मिनट
करवा चौथ व्रत समय: सुबह 06.23 बजे से रात 08.16 तक
व्रत की कुल अवधि : 13 घंटे 53 मिनट
करवा चौथ के दिन चंद्रोदय का समय: रात 8.16 बजे
चतुर्थी तिथि: करवा चौथ के दिन चतुर्थी तिथि की शुरुआत सुबह 06 बजकर 48 मिनट से
चतुर्थी तिथि का समापन: 18 अक्टूबर सुबह 07 बजकर 29 मिनट पर
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