समाचार सच, स्वास्थ्य डेस्क। इस दौड़ती-भागती जिंदगी में शांति पाना जितना ज़रूरी है, उतना ही मुश्किल भी होता जा रहा है। लगातार बढ़ते तनाव, चिंता और अनहेल्दी लाइफस्टाइल की वजह से बीमारियां छोटी उम्र में ही दस्तक देने लगी हैं। ऐसे समय में मेडिटेशन यानी ध्यान, सिर्फ एक मानसिक अभ्यास नहीं बल्कि एक सम्पूर्ण जीवनशैली बनकर उभर रहा है। पुराने जमाने में ऋषि-मुनि मेडिटेशन के जरिए न केवल आत्मिक शांति प्राप्त करते थे, बल्कि शारीरिक रोगों पर भी नियंत्रण पाते थे। आज जब मेडिकल साइंस भी इसकी ताकत को स्वीकार कर चुका है, तो इसमें कोई दो राय नहीं कि मेडिटेशन एक नेचुरल थैरेपी है, बिना किसी दवाई के, बिना किसी साइड इफेक्ट के। आज हम बात करेंगे उन 6 बीमारियों की जिन पर मेडिटेशन ने वैज्ञानिक तौर पर भी असर दिखाया है, और इनमें सबसे पहले आता है अल्जाइमर, एक ऐसी बीमारी जो याददाश्त को धीरे-धीरे छीन लेती है। आइए जानते हैं, कैसे मेडिटेशन आपको और आपके मस्तिष्क को इस लड़ाई में मजबूती देता है।


अल्जाइमर और मेडिटेशन का अनोखा रिश्ता
अल्जाइमर रोग दिमाग की एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति की याददाश्त और सोचने की क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है। यह समस्या ज्यादातर बुजुर्गों में देखी जाती है, लेकिन आज की टेंशन भरी लाइफस्टाइल में यह युवाओं को भी असर कर रही है। मेडिटेशन, खासकर ‘किर्तन क्रिया’ मेडिटेशन, जिसे रोजाना 12 मिनट किया जाए तो मस्तिष्क के उस हिस्से को एक्टिव करता है जो मेमोरी और एकाग्रता के लिए जिम्मेदार होता है। वैज्ञानिक रिसर्च बताती है कि मेडिटेशन मस्तिष्क के ‘हिप्पोकैम्पस’ एरिया में ग्रे मैटर को बढ़ाता है, जिससे अल्जाइमर के लक्षणों को रोका या धीमा किया जा सकता है।
हार्ट डिजीज में मेडिटेशन की भूमिका
दूसरी सबसे आम और खतरनाक बीमारी है हार्ट डिजीज। हाई ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और तनाव, ये तीनों हृदय रोगों के मुख्य कारण होते हैं। मेडिटेशन से न केवल स्ट्रेस हार्माेन ‘कोर्टिसोल’ का स्तर कम होता है, बल्कि दिल की धड़कन सामान्य रहती है और ब्लड प्रेशर भी कंट्रोल में आता है। 20 मिनट का ‘गाइडेड ब्रीदिंग मेडिटेशन’ दिल के मरीजों के लिए चमत्कारी हो सकता है।
कैंसर मरीजों के लिए मेंटल स्ट्रेंथ
कैंसर का इलाज जितना शारीरिक है, उससे कहीं ज्यादा मानसिक भी है। कीमोथेरेपी और दवाओं के कारण अक्सर कैंसर मरीज डिप्रेशन और एंग्जायटी से जूझते हैं। मेडिटेशन उन्हें मानसिक शांति देने के साथ-साथ, बॉडी की इम्यूनिटी को भी मजबूत करता है। माइंडफुलनेस मेडिटेशन कैंसर मरीजों के मूड को बेहतर बनाता है, नींद में सुधार करता है और भावनात्मक सहनशक्ति को भी बढ़ाता है।
अस्थमा और रेस्पिरेटरी डिजीज में राहत
अस्थमा और सांस से जुड़ी बीमारियों में व्यक्ति को बार-बार सांस फूलने, बेचैनी और घबराहट का सामना करना पड़ता है। ‘प्राणायाम’ और ‘बॉडी स्कैन मेडिटेशन’ तकनीक से शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह सुधरता है और सांस से जुड़ी दिक्कतों में आराम मिलता है। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए उपयोगी है जो इनहेलर के बिना नहीं रह पाते।
क्रॉनिक पेन और माइग्रेन में मेडिटेशन की ताकत
लगातार सिरदर्द, पीठ दर्द या मांसपेशियों की तकलीफ जैसे पुराने दर्दों में दवाइयां अस्थायी राहत देती हैं, लेकिन मेडिटेशन इन समस्याओं की जड़ तक पहुंचता है। ‘बॉडी अवेयरनेस’ और ‘लविंग-काइंडनेस मेडिटेशन’ जैसे तकनीक से शरीर में एंडोर्फिन हार्माेन बढ़ता है, जो नेचुरल पेनकिलर की तरह काम करता है।
मेंटल हेल्थ में सुधार
डिप्रेशन और एंग्जायटी आज की सबसे बड़ी मानसिक समस्याएं बन चुकी हैं, खासकर युवाओं के बीच। सोशल मीडिया, पढ़ाई का प्रेशर, करियर का तनाव, इन सभी वजहों से दिमाग हर समय एक्टिव मोड में रहता है। मेडिटेशन, खासकर माइंडफुलनेस मेडिटेशन, ब्रेन को रीलैक्स करता है और ‘सिरोटोनिन’ जैसे फील-गुड हार्माेन को एक्टिव करता है। यह तकनीक युवाओं को ओवरथिंकिंग से बचाती है और अंदर से सशक्त बनाती है।





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