मां दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि…

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देवी दुर्गा का सातवां रूप है कालरात्रि और इनकी नवरात्र के सातवें दिन पूजा का महत्व है। देवी के इस नाम से ही ऐसा जाहिर होता है की देवी का यह रूप बहुत ही भयानक होगा। इस रूप में देवी के शरीर का रंग अंधकार की तरह काला है और उनके बाल बिखरे हुए हैं। देवी के चार हाथ है एक हाथ में कटार, एक हाथ में लोहे का कांटा है और अन्य दोनों हाथ वर मुद्रा व अभय मुद्रा में है। देवी के तीन नेत्र है और गले में विद्युत की माला है। देवी का वाहन गधा है। देवी की सांसो से लगातार अग्नि निकलती रहती है।

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कालरात्रि की कथा: शुंभ-निशुंभ ने तीनो लोक में हाहाकार मचा रखा था। स्वर्ग पर विजय पाने के लिए उन्होंने अपने कदम आगे बढ़ा लिए थे। तभी मार्ग में उन्होंने देवी दुर्गा को देखा उन्होंने देवी को पाने की इच्छा जताई। जिसके लिए उन्होंने अपने राक्षस रक्तबीज को देवी से युद्ध के लिए भेजा। रक्तबीज इतना भयानक दानव था कि उसके रक्त की प्रत्येक बूंद से एक और राक्षस उत्पन्न हो जाता था। ऐसा देखकर देवी दुर्गा ने अपने शरीर से कालरात्रि को उत्पन्न किया। कालरात्रि ने रक्तबीज को मार कर उसके रक्त का सेवन कर लिया और इस तरह रक्तबीज का वध हो गया।

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इनकी पूजा बहुत ही शुभ फलदाई है इसलिए इनका नाम शुभंकारी भी है। कहा जाता है कि माता कालरात्रि की पूजा करने से मनुष्य को समस्त सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मां की भक्ति से दुष्टों का नाश होता है और ग्रह दोष दूर हो जाते हैं। मां को गुड का भोग अत्यंत प्रिय है।

मां कालरात्रि पूजा मंत्र –

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। 

लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥

वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा। 

वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥

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