पौष माह की अमावस्या को धार्मिक रुप से महत्वपूर्ण माना गया है। वहीं पौष माह में सूर्यदेव की उपासना भी विशेष रूप से की जाती है। अमावस्या के स्वामी पितर माने गए हैं। इसलिए पितरों की शांति के लिए इस दिन तर्पण व श्राद्ध किया जाता है। वहीं पितृ दोष और कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए इस दिन उपवास रखा जाता है। इस बार ये पर्व वृद्धि योग में 26 दिसंबरए गुरुवार को पड़ रहा है। ऐसा संयोग 3 साल बाद बन रहा है। इसके बाद 2032 में ऐसा संयोग बनेगा।
बृहस्पति अमावस्या का संयोग
ज्योतिष के संहिता स्कंध के अनुसारए शुभ दिनों में पड़ने वाली अमावस्या शुभ फल देने वाली होती है। 26 दिसंबरए गुरुवार को पौष माह की अमावस्या का संयोग 3 साल बाद बन रहा है। इससे पहले 29 दिसंबर 2016 को गुरुवार और अमावस्या के साथ वृद्धि योग बन रहा था। वहीं अगले 10 साल तक ऐसा संयोग नहीं बन रहा है। गुरुवार और पौष अमावस्या का शुभ संयोग 2 दिसंबर 2032 को बनेगा।
पौष अमावस्या पर स्नान, दान और व्रत
इस दिन सुबह जल्दी उठकर तीर्थ में या पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। संभव न हो तो पानी में गंगाजल मिलाकर नहाना चाहिए। पौष अमावस्या पर पितरों को तर्पण करने का विशेष महत्व है। इसलिए पवित्र नदीए जलाशय या कुंड में स्नान कर के सूर्य देव को अर्घ्य दें और उसके बाद पितरों का तर्पण करें।
पौष अमावस्या पर सुबह जल्दी तांबे के बर्तन में शुद्ध जलए लाल चंदन और लाल रंग के फूल डालकर सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए। इसके बाद पीपल के पेड़ का पूजन करना चाहिए और तुलसी के पौधे की परिक्रमा करनी चाहिए। इस दिन पितरों की शांति के लिए उपवास करना चाहिए और जरूरमंद लोगों को दान-दक्षिणा देना चाहिए।
पौष अमावस्या का महत्व
हिन्दू धर्म ग्रन्थों में पौष मास को बहुत ही पुण्य फलदायी बताया गया है। इस अमावस्या पर किए गए व्रत और दान के प्रभाव से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। मान्यता है कि पौष अमावस्या का व्रत करने से पितरों को शांति मिलती है और मनुष्य की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। पौष अमावस्या पर पितरों की शांति के लिए उपवास रखने से न केवल पितृगण बल्कि ब्रह्माए इंद्रए सूर्यए अग्निए वायुए ऋषि पशु-पक्षी समेत भूत प्राणी भी तृप्त होकर प्रसन्न होते हैं। पौष मास में होने वाले मौसम परिवर्तन के आधार पर आने वाले साल में होने वाली बारिश का अनुमान लगाया जा सकता है।
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