पितृपक्ष 2024: जलचर जन्तुओं में होता है पितरों का स्थान, श्राद्ध पक्ष में पूजा करने से मिलेगा लाभ

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समाचार सच, स्वास्थ्य डेस्क। हिंदू धर्म-शास्त्रों के अनुसार, पितरों का पितृलोक चंद्रमा के उर्ध्वभाग में होता है। वहीं, दूसरी तरफ अग्निहोत्र कर्म करने से आकाश मंडल के सभी पक्षियों की तृप्ति होती है। पक्षियों के लोक को भी पितृलोक के नाम से जाना गया है। अपने जीवन काल में अच्छे या बुरे कार्य करने पर व्यक्ति को मरणोपरांत कुछ समय के लिए तीन प्रमुख जलचर जंतुओं की योनि मिलती है, इसके बाद ही यम अनुसार उन्हें आगे कहां भेजा जाना निश्चित होता है।

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पितरों के समान होते हैं ये जलचर जंतु
मछली

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्री हरि नारायण ने मनुष्य जाति के सरंक्षण के लिए एक बार मत्स्य का अवतार लिया था। इस अवतार के माध्यम से नारायण ने धरती को जल प्रलय से बचाया था। यही वजह है कि, पितृ पक्ष में चावल के लड्डू बनाकर उन्हें जल में विसर्जित कर दिया जाता है।

कछुआ
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्री हरि नारायण ने देव-असुरों के बीच न्याय स्थापित करने के लिए एक बार कच्छप का अवतार लिया था। इस अवतार में उन्होंने मदरांचल पर्वत को अपनी पीठ पर रखा था। यही कारण है कि, जल की सभी गतिविधियों को जानने वाले कछुआ पवित्र जलचर है।

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नाग
हिंदू धर्म -शास्त्रों में नाग को पवित्र जलचर जंतु माना गया है। यह एक रहस्यमय जंतु है, जिसे पितरों के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। यही कारण है कि, पितरों को प्रसन्न करने के लिए हिंदू धर्म में नाग देवता की पूजा करने की परंपरा चली आ रही है।

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