70 वर्षीय रमेश बुबू स्वरोजगार से कमा रहे हैं 3 लाख रुपये

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– एक पॉलीहाउस से 1 लाख तक की आय

– केवल टमाटर की फसल से ही कमा लेते हैं 35 हज़ार।

– उन्नत प्रजाति के टमाटर, शिमला मिर्च, गोभी, हरी सब्जी तथा खीरे का उत्पादन

– वर्षा जल संग्रहण से निर्मित तालाब में मत्स्य उत्पादन

समाचार सच, हल्द्वानी। जनपद चम्पावत से 30 किमी दूर खेतीखान क्षेत्र के ग्राम पंचायत गोशनी में प्रगतिशील काश्तकार रमेश चंद्र ओली अन्य काश्तकारों के लिए भी प्रेरणास्रोत बन गए हैं। रमेश चंद्र ओली ने अपनी व्यक्तिगत भूमि पर कृषि से संबंधित विभिन्न प्रकार की गतिविधियों का एक उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया है। जिसमें पॉलीहाउस में सब्जी उत्पादन, फलदार पौधों का रोपण, मत्स्य उत्पादन, दुग्ध उत्पादन प्रमुख है। वे बताते हैं कि नाबार्ड तथा बायफ डेवलपमेंट रिसर्च फाउंडेशन द्वारा संचालित जलवायु परिवर्तन अनुकूलन परियोजना के तहत ही उन्होंने विभिन्न गतिविधियां शुरू की।

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उन्होंने बताया कि वे कम लागत वाले बांस के पॉलीहाउस में विभिन्न प्रकार की बेमौसमी सब्जियों का उत्पादन करके अच्छी आय प्राप्त कर रहे हैं। एक पॉलीहाउस से एक वर्ष में लगभग 1 लाख तक की आय प्राप्त हो जाती है जिसमें उन्नत प्रजाति के टमाटर, शिमला मिर्च, गोभी, हरी सब्जी तथा खीरा आदि का उत्पादन शामिल है। इसके अलावा उनके द्वारा विभिन्न प्रकार के फलों की बागवानी भी की जा रही है जिसमें वे आड़ू, प्लम, खुबानी, अखरोट व नाशपाती उगाते हैं।

उनके द्वारा वर्षा जल संग्रहण से निर्मित तालाब मत्स्य उत्पादन हेतु तैयार किया गया है। पॉलीहाउस के अलावा वे बाहर खेतों में भी आलू का उत्पादन कर रहे हैं। रमेश ओली द्वारा बताया गया कि इन सभी समन्वित गतिविधियों से उन्हें 1 वर्ष में लगभग 3 से 3.5 लाख की आय हो जाती है। उन्होंने कहा कि क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से कृषि एवं बागवानी पर काफी विपरीत असर पड़ा है। जो क्षेत्र कभी सेब के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था आज वहाँ पर सेब के पौधे लुप्त हो गए हैं तथा लोगों द्वारा गुठलीदार फलों जैसे आड़ू, अखरोट, प्लम, खुबानी तथा नाशपाती के उद्यानों का निर्माण किया जा रहा है।

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उन्होंने बताया कि इन सभी गतिविधियों से संबंधित उन्नत तकनीकी तथा तकनीकों के लिए उन्हें बायफ़ डेवलपमेंट रिसर्च फाउंडेशन से मदद प्राप्त होती है। उनका मानना है कि यदि पहाड़ में इन सभी गतिविधियों को लेकर समन्वित कृषि की जाए तो काश्तकारों की अच्छी आय हो सकती है और फिर लोगों को पहाड़ छोड़कर नौकरी के लिए कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं है। उन्होंने बायफ़ डेवलपमेंट रिसर्च फाउंडेशन के वरिष्ठ अधिकारी डॉक्टर दिनेश प्रसाद रतूड़ी और परियोजना अधिकारी पुष्कर बिष्ट का भी आभार जताया जो उन्हें समय-समय पर मार्गदर्शन देते रहते हैं तथा आगे बढ़ने के लिए निरंतर प्रोत्साहित करते रहते हैं।

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