हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व: डॉक्टर आचार्य सुशांत राज

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समाचार सच, देहरादून। डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने शरद पूर्णिमा के विषय मे जानकारी देते हुये बताया की अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। शरद पूर्णिमा, वर्षा और शीत ऋतु के संधि काल की पूर्णिमा होती है और चंद्रमा अपनी पूर्ण कला में होता है। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा अमृत वर्षा करता है। शरद पूर्णिमा के चंद्रमा के पूजन से स्वस्थ और निरोगी काया की प्राप्ति होती है। साथ ही इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा भी विशेष फलदायी है। पौराणिक कथा के अनुसार इसी दिन मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इस दिन अष्टलक्ष्मी के पूजन से धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
शरद पूर्णिमा का मुहूर्त – पंचांग के अनुसार अश्विन मास की पूर्णिमा के दिन शरद पूर्णिमा का पूजन होता है। इस साल शरद पूर्णिमा 19 अक्टूबर, दिन मंगलवार को मनाई जाएगी। पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 19 अक्टूबर को शाम 07 बजे से शुरू हो कर 20 अक्टूबर को रात्रि 08 बजकर 20 मिनट पर समाप्त होगी। शरद पूर्णिमा का पूजन सांय काल में चंद्रोदय के बाद किया जाता है। इस दिन पूजन का शुभ मुहूर्त शाम को 5 बजकर 27 मिनट पर चंद्रोदय के बाद रहेगा।

शरद पूर्णिमा का महात्म – पौराणिक मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा और मां लक्ष्मी के पूजन का विधान है। इस दिन चंद्रमा की किरणों को अमृत के समान माना जाता है, इस दिन चंद्र दर्शन और चंद्रमा की रोशनी में रखी खीर को सुबह खाने से निरोगी काया और स्वास्थय लाभ की प्राप्ति होती है। साथ ही मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी रात्रि भर भ्रमण करती हैं, इनके पूजन से घर में धन-संपदा का आगमन होता है। समुद्र मंथन की पौराणिक कथा के अनुसार इसी दिन मां लक्ष्मी का अभिर्भाव समुद्र से हुआ था। इसलिए दीपावली के पहले शरद पूर्णिमा का दिन मां लक्ष्मी के पूजन के लिए सबसे शुभ माना जाता है।

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