श्रावण मास 2024: भगवान शिव और श्रीकृष्ण के बीच छिड़े भंयकर युद्ध को देखकर जब कांप उठा था पूरा संसार, महादेव ने गोविंद पर चला दिया था परमाणु शस्त्र

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समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। भगवान शिव और श्रीकृष्ण दोनों भगवानों को एक-दूसरे का भक्त कहा जाता है। पौराणिक कहानियों के अनुसार भगवान शिव और श्रीकृष्ण एक-दूसरे के आराध्य ही नहीं माने जाते, बल्कि यह भी माना जाता है कि ये दोनों ही देवता एक-दूसरे के हृदय में वास करते हैं लेकिन महाभारत और कई पौराणिक कहानियों में भगवान शिव और श्रीकृष्ण के युद्ध का भी उल्लेख मिलता है। इस पौराणिक कहानी के अनुसार एक बार भगवान शिव और श्रीकृष्ण के बीच युद्ध छिड़ गया था। आइए, जानते हैं भगवान शिव और श्रीकृष्ण के बीच युद्ध की कहानी।

​बाणासुर महादेव का परम भक्त था​
बाणासुर महादेव का भक्त था। बाणासुर ने कई वर्षों तक तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था। बाणासुर से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने बाणासुर की रक्षा करने का वचन दिया। समय बीता और बाणासुर के घर में एक कन्या ने जन्म लिया। आगे चलकर यह कन्या भगवान श्रीकृष्ण के पोते अनिरुद्ध को चाहने लगी। अनिरुद्ध को देखकर बाणासुर की बेटी उषा उनसे विवाह करना चाहते थी। एक दिन उसने अपने मन की व्यथा अपनी सहेली चित्रलेखा को बताई। चित्रलेखा के पास कई मायावी शक्तियां थीं, इसलिए इन शक्तियों का इस्तेमाल करके चित्रलेखा ने कृष्ण जी के पोते अनिरुद्ध का हरण कर लिया। बाणासुर के महल में पहुंचकर अनिरुद्ध को चित्रलेखा से सारी बात पता चली। बाणासुर की बेटी की भावनाओं को जानकर अनिरुद्ध के मन में भी प्रेम के अंकुर फूट पड़े। इसके बाद अनिरुद्ध और उषा ने गंधर्व विवाह कर लिया। जब यह बात बाणासुर को पता चली, तो उसने बीच मार्ग से ही अनिरुद्ध का अपहरण करके उन्हें बंदी बना लिया।

श्रीकृष्ण के पास पहुंची अनिरुद्ध को बंदी बनाए जाने की सूचना​
श्रीकृष्ण को जब इस बात की सूचना मिली कि बाणासुर ने अनिरुद्ध को बंदी बनाकर अपने महल में रखा हुआ है, तो श्रीकृष्ण बलराम, साम्ब, प्रद्युम्न और अपनी नारायणी सेना के साथ बाणासुर से युद्ध करने के लिए उसके राज्य में पहुंच गए। बाणासुर को जब श्रीकृष्ण और उनकी सेना के आने की सूचना मिली, तो बाणासुर को पता चल गया कि वह अकेले श्रीकृष्ण और उनकी नारायणी सेना का सामना नहीं कर सकता, इसलिए उसने अपनी रक्षा के लिए महादेव को बुलावा भेजा।

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​भगवान शिव बाणासुर की रक्षा करने के लिए लेकर आए अपनी सेना​
भगवान शिव ने अपने भक्त बाणासुर की रक्षा करने का वचन दिया था, इसलिए युद्ध का समाचार सुनकर महादेव नंदी, कार्तिकेय और अन्य कैलाश वासी योद्धाओं के साथ बाणासुर के राज्य में आए। जब भगवान शिव ने श्रीकृष्ण को अपनी नारायणी सेना के साथ देखा, तो उन्होंने अपने भक्त बाणासुर की रक्षा करने के लिए श्रीकृष्ण से युद्ध करने का निश्चय किया। कृष्ण जी की नारायणी सेना और महादेव के कैलाश गण सभी आपस में युद्ध करने लगे।​श्रीकृष्ण और महादेव के बीच हुआ भंयकर युद्ध​
​श्रीकृष्ण और महादेव के बीच हुआ भंयकर युद्ध​

चारों तरफ भीषण रक्तपात हो रहा था। इधर महादेव भी अपने भक्त की रक्षा करने के लिए श्रीकृष्ण से युद्ध कर रहे थे। दोनों देवताओं ने एक-दूसरे पर कई अस्त्र छोड़े। भगवान शिव ने श्रीकृष्ण पर पाशुपातास्त्र से आक्रमण किया, इसका उत्तर देते हुए श्रीकृष्ण ने महादेव पर नारायणस्त्र से प्रहार किया। महादेव और कृष्ण के बीच हुए इस भंयकर युद्ध से सृष्टि में हाहाकार मच गया। जब श्रीकृष्ण ने देखा कि महादेव अपने भक्त की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं और उनके रहते बाणासुर को कुछ नहीं हो सकता, तो उन्होंने महादेव का मान रखते हुए उन पर निद्रास्त्र का प्रयोग किया, जिससे महादेव गहरी निद्रा में सो गए।

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​महादेव की निद्रा के बाद बाणासुर पर श्रीकृष्ण ने किया प्रहार
भगवान शिव के निद्रा में जाते ही भगवान कृष्ण ने बाणासुर से युद्ध करना शुरू किया। कृष्ण ने बाणासुर को अपनी भूल सुधारने के लिए कहा लेकिन अंहकारी बाणासुर ने उनकी कोई बात नहीं मानी। तब श्रीकृष्ण ने बाणासुर की भुजाएं काट दीं, जब बाणासुर की चार भुजाएं शेष रह गई, तो महादेव निद्रा से जागे और कृष्ण जी से फिर से युद्ध करने लगे। इस भंयकर युद्ध का कोई निष्कर्ष नहीं निकल पा रहा था। इस भंयकर दृश्य को देखकर सभी देवता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। ब्रह्मा जी ने माता दुर्गा का आह्वान करके उन्हें भगवान शिव और कृष्ण के युद्ध पर विराम लगाने की प्रार्थना की।

​देवी दुर्गा की कृपा से महादेव और श्रीकृष्ण का युद्ध समाप्त हुआ​
देवी दुर्गा जब रणभूमि पर पहुंचीं, तो महादेव और श्रीकृष्ण सहित सभी योद्धाओं ने देवी दुर्गा को नमन किया। तब देवी दुर्गा ने भगवान शिव और श्रीकृष्ण से युद्ध की समाप्ति का निवेदन किया। देवी दुर्गा ने कृष्ण जी से विनम्रपूर्वक कहा ष्हे माधव! बाणासुर आपके भक्त प्रह्लाद का वंशज है और आपने प्रह्लाद को वरदान दिया था कि उनके वंश का कोई भी मनुष्य आपके हाथों से नहीं मारा जाएगा।ष् देवी दुर्गा की बात सुनकर श्रीकृष्ण ने मुस्कुराकर बाणासुर को देखा। देवी दुर्गा की बात सुनकर बाणासुर को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने महादेव और श्रीकृष्ण को इस परिस्थिति में डालने के लिए क्षमा मांगी। इसके बाद युद्ध की समाप्ति हुई।

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