श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ेगा 15 जून को कैंची धाम में

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-उक्त मेले को लेकर प्रशासन की सभी तैयारियां पूर्ण
-अनेक चमत्कारिक व अद्भुत शक्तियो एवं दिव्य ज्ञान और अलौकिक शक्तियों का प्रयोग जन कल्याण व मानवता के हितार्थ करने से नीम करौली महाराज को अपार ख्याति प्राप्त हुई

समाचार सच, हल्द्वानी। उत्तराखण्ड अनादिकाल से ही देवभूमि के नाम से जानी जाती है। असंख्य साधु सन्तों ने ईश्वर प्राप्ति के लिए देवभूमि को अपनी तपस्थली बनाया और साक्षत ईश्वर के दर्शन किये। ऐसे ही साधु सन्तों में अग्रणी नीम करौली बाबा ने भवाली अल्मोड़ा राष्ट्रीय मार्ग पर स्थित कैंची नाम स्थान को अपनी तपस्थली बनाया। जो आज कैंची धाम के नाम से विख्यात है। यहां हर वर्ष 15 जून को लगने वाले मेले में स्थानीय ही नहीं बल्कि देश विदेश के श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
मेले का भव्य तरीके से सम्पन्न कराने के लिए तैयारिया ऊचे स्तर पर एक माह पूर्व से ही प्रारम्भ हो जाती है।

देश-विदेश से भक्तजन एक माह पूर्व यहां पहुचंकर अपनी-अपनी जिम्मेदारियां संभाल लेते हैं और 15 जून से पूर्व ही रामायण पाठ व पूजा- अर्चना प्रारम्भ हो जाती है। मेले के दिन प्रात से ही बड़ी संख्या में भक्तों का आवागमन प्रारम्भ हो जाता है। और यह सिलसिला देर सायं तक जारी रहता हैं हल्द्वानी से उत्तराखण्ड परिवहन निगम द्वारा इस दिन लगाई जाने वाले विशेष बसों के अलावा टूरिस्ट बसों एवं निजी वाहनों का मन्दिर से काफी दूरी से ही जमावड़ा कुछ इस तरह लग जाता है कि एक- दो किलोमीटर की पैदल यात्रा भी करनी पड़ जाती है।

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पूजा-अर्चना के पश्चात प्रसाद के रूप में विशाल भण्डारे में मालपुए वितरित किये जाते है भण्डारा स्थल में भी भारी भीड़ के बावजूद कोई भी श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करने से वंचित नहीं रह पाता। प्रतिवर्ष प्रसाद वितरण के लिए 2 लाख पॉलीथीन की थैलिया मंगवाई जाती थी। परन्तु पॉलीथीन के बढ़ते दुष्प्रभाव को देखते हुए मंदिर प्रशासन ने इस वर्ष प्रसाद कागज के लिफाफे में देने का निर्णय लिया है।

कैंची धाम के संस्थापक प्रसिद्ध निर्मल हृदयी नीम करौली महाराज का जन्म आगरा जनपद के नागरू ग्राम मे हुआ था। बाल्यकाल में उनका नाम लक्ष्मण दास था। माता का निधन हो जाने तथा सौतेली मां के रूखे व्यवहार से बालक लक्ष्मण दास ने गृह त्याग कर दिया। जनकल्याण व प्रभु भक्ति को ही सर्वोपरि मानते हुए गृह भक्ति को ही सर्वोपरि मानते हुए गृह त्याग करने के पश्चात साधु संतों की संगत कर ली।

साधु संतो के संसर्ग व प्रभु के प्रति अटूट भक्ति से महाराज को अनेक चमत्कारिक व अद्भुत शक्तियो एवं दिव्य ज्ञान और अलौकिक शक्तियों का प्रयोग जन कल्याण व मानवता के हितार्थ करने से महाराज को अपार ख्याति प्राप्त हुई तथा नीम करौली महाराज के नाम से पहचाने जाने लगे। नीम करोली महाराज ने सन् 1942 में उत्तराखण्ड की पवित्र धरती पर आगमन किया तथा कैंची क्षेत्र में ईश्वर की अनुकम्पा व ईश्वर के वास का आभास होने से उनका मन वहां पर रम गया। कुछ समय कैंची में प्रवास के पश्चात वे लौंट गये तथा 1962 में पुनः लौटने पर उन्होंने क्षेत्रीय लोगों के सहयोग से मन्दिर निर्माण कराने का निर्णय लिया। मन्दिर निर्माण कार्य पूरा होने के पश्चात 15 जून 1964 को विशाल भण्डारे का आयोजन किया गया जो कि तब से अब तक अनवरत् जारी है।

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गौरतलब हे कि नीम करौली महाराज ने देश के विभिन्न नगरों लखनऊ, दिल्ली, वृन्दावन, ऋषिकेश एवं कैंची के अतिरिक्त विदेशों में भी जितने मन्दिरों एवं आश्रमों की आधारशिलाएं रखी, उनकी प्राण-प्रतिष्ठा 15 जून को ही रखी। कैंची मन्दिर में महाराज ने 15 जून 1974 को मां वैष्णों देवी मन्दिर 15 जून 1964 को रूद्रावतार हनुमान मन्दिर तथा 15 जून 1973 को विध्य वासिनी माता मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा की। अपने आलौकिक देवचल एवं भक्तों की मुरादे पूरी करने के कारण कैंची मन्दिर की जितनी प्रतिष्ठा उत्तराखण्डवासियो के दिलों में है, उतनी ही अन्य शहरों प्रदेशो व देशों के लोगों के दिलो में भी विद्यमान है।

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