समाचार सच, चमोली। विश्व प्रसिद्ध बदरीनाथ धाम के कपाट 17 नवंबर को रात 9.07 बजे विधि-विधान और भक्तिमय माहौल के बीच शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। इस मौके पर सेना के बैंड की भक्तिमय धुनों और पारंपरिक गीत ‘बेडू पाको बारमासा’ के साथ हजारों श्रद्धालु इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बने।
मंदिर को 15 क्विंटल फूलों से सजाया गया था, जिससे इसकी दिव्यता और भी बढ़ गई। कपाट बंद होने से पहले भगवान बदरीविशाल की अंतिम शयन आरती में श्रद्धालुओं ने विशेष पूजा-अर्चना की।
कपाट बंद होने की प्रक्रिया
रात 7.30 बजे से कपाट बंद करने की प्रक्रिया शुरू हुई। रावल अमरनाथ नंबूदरी, धर्माधिकारी राधा कृष्ण थपलियाल और वेदपाठी पुजारियों ने विधि-विधान से कपाट बंद किए। भगवान उद्धव और कुबेर को गर्भगृह से बाहर लाकर विशेष पूजा की गई। इसके बाद रावल ने स्त्री रूप धारण कर मां लक्ष्मी को गर्भगृह में विराजमान किया। रात 8रू15 बजे भगवान बदरीविशाल को माणा महिला मंगल दल द्वारा बुना गया घृत कंबल ओढ़ाया गया।
पंच पूजाओं का समापन
13 नवंबर से शुरू हुई पंच पूजाओं के तहत पहले दिन भगवान गणेश और उसके बाद 14 नवंबर को आदि केदारेश्वर एवं शंकराचार्य मंदिर के कपाट बंद किए गए।
गद्दी प्रस्थान कार्यक्रम
बीकेटीसी मीडिया प्रभारी हरीश गौड़ ने जानकारी दी कि 18 नवंबर को सुबह 10 बजे उद्धव, कुबेर और शंकराचार्य की गद्दी बदरीनाथ से योग बदरी पांडुकेश्वर के लिए प्रस्थान करेगी। इसके बाद 19 नवंबर को नृसिंह मंदिर, ज्योतिर्मठ में गद्दी विराजमान होगी, जहां शीतकालीन पूजाएं आयोजित होंगी।
लोक संस्कृति की झलक
कपाट बंद होने से पहले लोक कलाकारों और महिला मंगल दल ने लोक नृत्य और जागर का आयोजन किया। वहीं, श्रद्धालुओं के लिए दानदाताओं और सेना की ओर से भंडारे का आयोजन भी हुआ।
इस वर्ष बदरीनाथ धाम के कपाट 12 मई को खुले थे। अब मंदिर 2025 में वसंत पंचमी के बाद पुनः खुलेंगे।
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