समाचार सच. अध्यात्म डेस्क। आज हम अपने पाठकों को यह बताने जा रहे है कि पंजाबियों का लोहड़ी पर्व क्यों मनाया जाता है और इसकी क्या विशेषताएं हैं। लोहड़ी केवल पंजाब में ही नहीं बल्कि संपूर्ण भारत में मनाया जाता है अलग-अलग नामों से फसल पकने की खुशी यहां पूरे जोश के साथ लोहड़ी के रुप में मनाई जाती हैै। इस त्यौहार की एक विशेषता यह भी है कि नवविवाहिता और नवजात शिशु के होने पर भी यह त्यौहार उनके घर बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है और इस गीत को गाकर लोहड़ी पर्व को मनाया जाता है। जो इस प्रकार से –
सुंदर मुंदरिए – हो
तेरा कौन विचारा-हो
दुल्ला भट्टी वाला-हो
दुल्ले ने धी ब्याही-हो
सेर शक्कर पाई-हो
कुडी दे बोझे पाई-हो
कुड़ी दा लाल पटाका-हो
कुड़ी दा शालू पाटा-हो
शालू कौन समेटे-हो
चाचा गाली देसे-हो
चाचे चूरी कुट्टी-हो
जिमींदारां लुट्टी-हो
जिमींदारा सदाए-हो
गिन-गिन पोले लाए-हो
इक पोला घिस गया जिमींदार वोट्टी लै के नस्स गया – हो!
‘पा नी माई पाथी तेरा पुत्त चढेगा हाथी हाथी
उत्ते जौं तेरे पुत्त पोत्रे नौ!
नौंवां दी कमाई तेरी झोली विच पाई
टेर नी माँ टेर नी
लाल चरखा फेर नी!
बुड्ढी साँस लैंदी है
उत्तों रात पैंदी है
अन्दर बट्टे ना खड्काओ
सान्नू दूरों ना डराओ!
चारक दाने खिल्लां दे
पाथी लैके हिल्लांगे
कोठे उत्ते मोर सान्नू
पाथी देके तोर!
कंडा कंडा नी लकडियो
कंडा सी
इस कंडे दे नाल कलीरा सी
जुग जीवे नी भाबो तेरा वीरा नी,
पा माई पा,
काले कुत्ते नू वी पा
काला कुत्ता दवे वदाइयाँ,
तेरियां जीवन मझियाँ गाईयाँ,
मझियाँ गाईयाँ दित्ता दुध,
तेरे जीवन सके पुत्त,
सक्के पुत्तां दी वदाई,
वोटी छम छम करदी आई।
साड़े पैरां हेठ रोड, सानूं छेती-छेती तोर!
साड़े पैरां हेठ दहीं असीं मिलना वी नईं!
साड़े पैरां हेठ परात सानूं उत्तों पै गई रात!
सुंदरिए-मुंदरिए हो, तेरा कोन विचारा हो
हिन्दू पंचांग के अनुसार लोहड़ी मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाई जाती है। लोहड़ी का त्यौहार खुद में अनेक सौगातों को लिए होता है। फसल पकने पर किसान खुशी को जाहिर करता है जो लोहड़ी पर्व, जोश व उल्लास को दर्शाते हुए सांस्कृतिक जुड़ाव को दर्शाता है , पंजाब और हरियाणा में विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है।
लोहड़ी से जुड़ी मान्यताएं: लोहड़ी के पर्व के संदर्भ में अनेकों मान्यताएं हैं जैसे कि लोगों के घर जा कर लोहड़ी मांगी जाती हैं और दुल्ला भट्टी के गीत गाए जाते हैं, कहते हैं कि दुल्ला भट्टी एक लुटेरा हुआ करता था लेकिन वह हिंदू लड़कियों को बेचे जाने का विरोधी था और उन्हें बचा कर वह उनकी हिंदू लड़कों से शादी करा देता था इस कारण लोग उसे पसंद करते थे और आज भी लोहड़ी गीतों में उसके प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। हिन्दु धर्म में यह मान्यता है कि आग में जो भी समर्पित किया जाता है वह सीधे हमारे देवों-पितरों को जाता है.इसलिए जब लोहड़ी जलाई जाती है तो उसकी पूजा गेहूं की नयी फसल की बालियों से की जाती है. लोहड़ी के दिन अग्नि को प्रजव्व्लित कर उसके चारों ओर नाच- गाकर शुक्रिया अदा किया जाता है। इस पर्व के मनाये जाने के पीछे एक प्रचलित लोक कथा भी है कि मकर संक्रांति के दिन कंस ने कृष्ण को मारने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल में भेजा था, जिसे कृष्ण ने खेलदृखेल में ही मार डाला था। उसी घटना की स्मृति में लोहिता का पावन पर्व मनाया जाता है। सिन्धी समाज में भी मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व ;लाल लाहीद्ध के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है।
यूं तो लोहड़ी उतरी भारत में प्रत्येक वर्ग, हर आयु के जन के लिये खुशियां लेकर आती है। परन्तु नवविवाहित दम्पतियों और नवजात शिशुओं के लिये यह दिन विशेष होता है।युवक -युवतियां सज-धज, सुन्दर वस्त्रों में एक-दूसरे से गीत-संगीत की प्रतियोगिताएं रखते है। लोहड़ी की संध्या में जलती लकड़ियों के सामने नवविवाहित जोड़े अपनी वैवाहिक जीवन को सुखमय व शान्ति पूर्ण बनाये रखने की कामना करते है। सांस्कृतिक स्थलों में लोहड़ी त्यौहार की तैयारियां समय से कुछ दिन पूर्व ही आरम्भ हो जाती है।
लोहड़ी पर भंगड़ा और गिद्दा की धूम
लोहड़ी के पर्व पर लोकगीतों की धूम मची रहती है, चारों और ढोल की थाप पर भंगड़ा-गिद्दा करते हुए लोग आनंद से नाचते नज़र आते हैं।
लोहडी के दिन में भंगडे की गूंज और शाम होते ही लकड़ियों की आग और आग में डाले जाने वाली चीजों की महक एक गांव को दूसरे गांव व एक घर को दूसरे घर से बांधे रखती है. यह सिलसिला देर रात तक यूं ही चलता रहता है. बडे-बडे ढोलों की थाप, जिसमें बजाने वाले थक जायें, पर पैरों की थिरकन में कमी न हों, रेवड़ी और मूंगफली का स्वाद सब एक साथ रात भर चलता रहता हैै।
माघ का आगमन: लोहडी पर्व क्योकि मकर-संक्रान्ति से ठीक पहले कि संध्या में मनाया जाता है तथा इस त्यौहार का सीधा संबन्ध सूर्य के मकर राशि में प्रवेश से होता है. लोहड़ी पौष की आखिरी रात को मनायी जाती है जो माघ महीने के शुभारम्भ व उत्तरायण काल का शुभ समय के आगमन को दर्शाता है और साथ ही साथ ठंड को दूर करता हुआ मौसम में बदलाव का संकेत बनता है।
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