समाचार सच, ऋषिकेश। आज विश्व शाकाहार दिवस और अन्तर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा की भारतीय संस्कृति तो हमेशा से ही शाकाहार पूर्ण जीवन तथा जियो और जीने दो कि संस्कृति में विश्वास रखती है परन्तु पश्चिम में इस दिवस को मनाने की शुरूआत वर्ष 1977 में नॉर्थ अमेरिकन वेजिटेरियन सोसाइटी ने की थी। इस सोसाइटी का उद्देश्य लोगों को शाकाहारी भोजन के लिये प्रेरित करना था। इस दिवस का उद्देश्य जनसमुदाय को शाकाहारी जीवन शैली के लाभों के बारे में बताना तथा शाकाहारी बनने हेतु प्रोत्साहित करने के लिये मनाया जाता है। स्वामी जी ने कहा कि विगत कुछ वर्षों के आँकड़ों को देखें तो शाकाहारियों की संख्या में वृद्धि हुयी है, लेकिन अब भी माँसाहार करने वालों की संख्या काफी अधिक है। स्वामी जी ने कहा कि ‘शाकाहारी’ होने से तात्पर्य मांस का सेवन नहीं करने के साथ ही भावनात्मक रूप से भी अहिंसा का पालन करने से है। शाकाहारी जीवन शैली से तात्पर्य आत्मिक शांति से भी है। दूसरा जितनी ज्यादा मांसाहारियों की संख्या बढ़ेगी उतने ज्यादा जानवरों की हत्या होगी तथा जंगलों का कटान होगा, पर्यावरण प्रदूषित होगा, नष्ट होगा और जितने अधिक शाकाहारियों की संख्या बढ़ेगी उतना अधिक पेड़-पौधों का रोपण होगा यह इसलिये भी जरूरी है कि शाकाहारी जीवन शैली अपनायंे। शाकाहार में वसा एवं कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होती है, जो कि हृदय के लिये बेहद अच्छा है। लैक्टो-शाकाहार में पेड़-पौधों पर आधारित खाद्य पदार्थ एवं दुग्ध उत्पाद (दूध, पनीर, दही, मक्खन, घी, मलाई) शामिल होते हैं, इससे गौ का संरक्षण होगा, व्यवसाय और स्वास्थ्य भी बढ़ेगा। सम्पूर्ण विश्व में वृद्धजनों के प्रति सम्मान की दृष्टि बनाये रखने और उनके प्रति हो रहे अन्याय को समाप्त करने के लिए प्रतिवर्ष 1 अक्तूबर को विश्व वृद्धजन दिवस मनाया जाता है। 14 दिसम्बर, 1990 को यह निर्णय लिया बुजुर्गों समाज में उनका सही स्थान व सम्मान दिलाने के लिये प्रतिवर्ष 1 अक्टूबर, 1991 को पहली बार अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस मनाया गया था, जिसके बाद से प्रतिवर्ष मनाया जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि वृद्धजनांे कोे भरण-पोषण, भोजन, कपड़ा, आवास, चिकित्सीय सहायता और उपचार, स्वास्थ्य देखभाल, बचाव, सुरक्षा के साथ प्रेमयुक्त गरिमापूर्ण जीवन देना जरूरी है। स्वामी जी ने कहा कि वृद्धजनों को एक सम्मानजनक जीवन देने परिवारवालों के साथ-साथ समाज की भी जिम्मेदारी है। आज अन्तर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन में ‘‘वृद्धजन सम्मान समारोह’’ का आयोजन किया गया। सर्वेश्वर मन्दिर प्रांगण, परमार्थ निकेतन में स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी की पावन उपस्थिति में परमार्थ परिवार के सदस्यों और ऋषिकुमारों ने सोशल डिसटेंसिंग का पालन करते हुये वृद्धजनों का तिलक, अंगवस्त्र और रूद्राक्ष की माला से स्वागत किया। इस अवसर पर वृद्धजन, जो कि वर्षाे से अपने परिवार से दूर परमार्थ निकेतन के दिव्य वातावरण में निवास कर रहे हैं उन्होंने अपने विचार साझा करते हुये कहा कि कोविड-19 के दौरान जिस प्रकार हमारे भोजन, दवाईयां और अन्य सामग्रियों की व्यवस्था की गयी तथा आश्रम में कोरोना से बचाव हेतु जो उच्च स्तर की व्यवस्थायें उपलब्ध करायी जा रही है उसके लिये हम आभारी है, हमारे पास शब्द नहीं है अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिये। स्वामी जी ने कहा कि वैश्वीकरण के इस युग में जैसे-जैसे समाज में विकास की गति तेज होती जा रही है वैसे-वैसे रोजगार और काम के संबंध में युवा अपने मूल स्थान से बाहर जा रहे हैं। वे बाहर जाकर बेहतर विकल्पों की तलाश कर रहें हैं। ऐसे में परिवार के वृद्ध सदस्यों को साथ ले जाना संभव नहीं हो पाता है जिसके कारण वे वृद्धजन अपने मूल स्थान या फिर स्वदेश में रहकर एकांत में जीवन जीने को मजबूर हो जाते हैं साथ ही वे अकेलेपन के शिकार भी हो जाते हैं। स्वामी जी ने कहा कि वृद्ध होने पर वे पूरी तरह से अपने परिवार पर निर्भर हो जाते हैं। कई बार उत्तम सुविधाओं तथा अच्छी देखभाल के बावजूद भी उनके जीवन में अकेलापन रहता है, जिससे तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। उम्र के इस पड़ाव पर इंसान को अधिक देखभाल, प्यार और साथ की आवश्यकता होती है, परन्तु वर्तमान की रोजगार व्यवस्था, बदलती जीवन शैली, बदलती सामाजिक व्यवस्था तथा अन्य कारणों से बुजुर्गों एवं युवाओं के मध्य एक खाई गहरी होती जा रही है। स्वामी जी ने कहा कि समाज की वृद्धजन रूपी अमूल्य धरोहर को सहेजने के लिये हमें अपने बच्चों को संस्कार युक्त जीवन, अपनी जड़ों से जुड़ना अपने मूल्यों को आत्मसात करना तथा सामाजिक व्यवस्था के सभी पहलुओं पर गंभीरता से विचार करने की नितांत आवश्यकता है क्योंकि जो आज युवा है भविष्य में इन बुजुर्गों का स्थान वे ही लेने वाले हैं।
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