गणेश चतुर्थी के दिन इस तरह से पूजा करने से कई बाधाएं हो जाती हैं दूर…

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प्रत्येक वर्ष भाद्रपद की चतुर्थी को ज्ञान, समृद्धि और सौभाग्य के देवता भगवान गणेशजी का जन्मदिन बनाया है। शुभ कामों में प्रथम पूज्य भगवान गणेश जी को विध्नहर्ता कहा जाता है। गणेश चतुर्थी का त्योहार पूरे भारत ही नहीं अपितु दुनिया के कई देशों में धूमधाम से बनाया जाता है।
इस बार गणेश चतुर्थी का त्योहार सोमवार यानी दो सितम्बर को धूमधाम से बनाया जाएगा। गणेश चतुर्थी के दिन भगवान की पूजा से कई बाधाएं दूर हो जाती हैं।

इस दिन गणेश पूजा में कुछ विशेष चीजों को शामिल करने से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। विनायक के नाम से संसार में लोकप्रिय गणेश जी की पूजा में दूर्वा का विशेष महत्व होता है। इसी कारण दूर्वा को इस पूजा में जरूर शामिल करना चाहिए। इसके बिना गणेश जी की पूजा अधूरी मानी जाती है।
गणेश जी को मोदक बहुत ही अच्छे लगते हैं। इस दिन गणेश जी को मोदक का भोग लगाने से वह प्रसन्न होकर आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। वहीं लोगों को साफ मन से भगवान गणेशजी की आराधना करना चाहिए। इससे गणेश जी जल्द ही आप पर प्रसन्न हो जाएंगे।

गणेश उत्सव को लेकर खास तैयारी:
गणेश चतुर्थी का त्योहार आने के कई दिन से पहले से ही बाजारों में इसकी रौनक दिखने लगती है। बाजारों में दुकानें सुंदर-सुंदर गणेश प्रतिमाएं से सज जाती हैं। बड़ी संख्या में लोग खासकर महाराष्ट्र में अपने घरों में मूर्ति की स्थापना करते हैं और फिर अनंत चतुर्दशी वाले दिन गणेश प्रतिमा का विर्सजन करते हैं।

गणेश उत्सव की तैयारियों में लोग कई दिन पहले से ही जुट जाते हैं। जगह-जगह भव्य गणेश पंडालों का आयोजन किया जाता है, जिसमें पूरा विधि-विधान के साथ गणेश प्रतिमा स्थापित की जाती हैं।

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इन दिनों भंडारों का भी आयोजन करवाए जाते हैं। और खास तरह की साज-सजावट भी होती है इस त्योहार में मानो पूरा माहौल भक्तिमय हो जाता है। गणेश विसर्जन के दौरान भक्ति का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। भक्त गण अपने गणपति जी को समुंदर और नदी में विर्सजित करते हैं इस दौरान
”गणपति बप्पा मोरया, मंगल मूर्ति मोरया”
के जयकारों के साथ अपने बप्पा को विदाई देते हैं। इस तरह अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश पूजा का समापन होता है।

गणेश पूजन और उपवास रखने से मिलता है 101 गुना फल और सुख-समृद्धि:
गणपति बप्पा का जनमोत्सव गणेश चतुर्थी को विनायक चतर्थी के नाम से भी जाना जाता है। जबकि भविष्य पुराण के मुताबिक शिवा, संज्ञा और सुधा यह तीन चतुर्थी होती है इनमें भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को संज्ञा कहते हैं।

ऐसी भी मान्यता है कि इसमें स्नान और उपवास करने से 101 गुना फल मिलता है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मध्यान्ह में भगवान गणेश का जन्म हुआ था इसी कारण यह तिथि महक नाम से भी जानी जाती है। इस दिन भगवान गणपति की पूजा, उपासना व्रत, कीर्तन और जागरण करने से भक्तों को मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।

भगवान गणेश जी की पूजन-विधि:

गणेश जी का पूजन अगर सही विधि से किया जाए तो भक्तों को मन चाहे फल की प्राप्ति होती है। भगवान गणपति की पूजा आराधना की विधि नीचे लिखी गई है:

-सबसे पहले स्नान कर लाल वस्त्र पहने क्योंकी लाल कपड़ा भगवान गणेश जी का सबसे ज्यादा प्रिय है।
-गणेश चतुर्थी की पूजा के लिए एक चौकी पर लाल दुपट्टा बिछा कर उस पर सिंदूर या रोली सज्जित कर आसन बनायें और उसके बीच में गणपति की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें, और गाय के घी से युक्त दीपक जलाएं। पूजा के दौरान गणेश जी का मुख उत्तर या पूर्व दिशा में ही रखें।

  • ओम देवताभ्यो नमः मंत्र के साथ दीपक का पूजन करें। इसके बाद हाथ जोड़कर भगवान गणेश की प्रतिमा के सम्मुख आवाहन मुद्रा में खड़े हो कर उनका आवाहन करें। और फिर भगवान गणेश जी की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा करें। आवाहन एवं प्रतिष्ठापन के बाद भगवान गणेश के आसन के सम्मुख पांच पुष्प अञ्जलि में लेकर छोड़े।
    -अब गणेश जी का पंचामृत से अभिषेक करें।
    -पंचामृत में आप सबसे पहले भगवान गणेश जी का अभिषेक पहले दूध से करें, फिर दही से करें, फिर घी से करें और फिर गंगा जल से या शुद्ध जल से करें । इस तरह पंचामृत से गणपति बाप्पा का अभिषेक करें।
    -अभिषेक करने के बाद गजानन को रोली और कलावा चढ़ाए।
    -सिंदूर गणेश जी को बेहद प्रिय है इसलिए गणपति बप्पा को सिंदूर अवश्य चढ़ाएं।
    -भगवान गणेश जी की दो पत्नियां रिद्धि और सिद्धि हैं इसलिए रिद्दि-सिद्धि के रूप में उन्हें दो सुपारी और पान चढ़ाएं।
    -फल, फूल और हरी घास अथवा दूवा चढ़ाए और फूल में गणेश जी को पीला कनेर बेहद प्रिय है, पीला कनेर चढ़ाएं और दूब चढ़ाएं।
    -इसके बाद गणेश जी के सबसे प्रिय मिठाई मोदक (लड्डू ) का भोग लगाएं।
    -इसके बाद सभी परिवारजनों के साथ मिलकर गणेश जी की आरती गाएं।
    -श्री गणेश जी का मंत्रोच्चारण करें और उन्हें 12 नामों का भी उच्चारण करें।
    -भगवान गणपति जी के जयकारे लगाएं।

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