‘तू गोकुल का रखवाला है कोई क्या जाने नंदलाला है’: मृदुल कृष्ण शास्त्री

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पंचम दिन श्रीमद् भागवत कथा में विशेष महोत्सव के रूप में श्री गिरिराज पूजन (छप्पन भोग महोत्सव) विशेष धूम-धाम से मनाया

समाचार सच, हल्द्वानी। हरि शरणम् जन सेवायत (Hari Sharanam Jan Sewayat) द्वारा आयोजित भक्ति महोत्सव में पंचम दिवस श्रीमद् भागवत कथा में विशेष महोत्सव के रूप मे श्री गिरिराज पूजन (छप्पन भोग महोत्सव) विशेष धूम-धाम से मनाया गया। इस मौके पर कथावाचक मृदुल कृष्ण शास्त्री (mridul krishna shastri) ने कहा कि गोविंदे लभते रतिम, जो लोग पूतना वध की कथा सुनते है उन्हे मेरी भक्ति प्राप्त होती है। व्यास जी ने कहा कि जहां स्वार्थ समाप्त होता है मानवता वहीं से प्रारम्भ होती है मानव योनि में जन्म लेने मात्र से जीव को मानवता प्राप्त नहीं होती। यदि मनुष्य योनि में जन्म लेने के बाद भी उसमें स्वार्थ की भावना भरी हुई है, तो वह मानव होते हुए भी राक्षसी वृत्ति की पायदान पर खड़ा रहता है। यदि व्यक्ति स्वार्थ की भावना को त्याग कर हमेशा परमार्थ भाव से जीवन यापन करे तो निश्चित रूप से वह एक अच्छा इन्सान है, यानी सुदृढ मानवता की श्रेणी में खड़ा होकर पर सेवा कार्य में सेवारत है। क्योंकि परमार्थ की भावना ही व्यक्ति को महान बनाती है।

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परमात्मा श्री कृष्ण की लीलाओं में पूतना चरित्र पर व्याख्यान देते हुए परम श्रद्धेय आचार्य गोस्वामी श्री मृदुल कृष्ण जी महाराज ने कहा कि कंस स्वयं को सब कुछ समझ लिया। हमसे बड़ा कोई न हो। जो हमसे बड़ा बनना चाहे या हमारा विरोधी हो उसको मार दिया जाय। ऐसा निश्चय कर ब्रज क्षेत्र में जितने बालक पैदा हुए हो उनको मार डालो, और इसके लिये पूतना राक्षसी को भेजा तो प्रभु श्री बालकृष्ण भगवान ने पूतना को मोक्ष प्रदान किया ही इधर कंस प्रतापी राजा उग्रसेन का पुत्र होते भी स्वार्थ लोलुपता अधिकाधिक होने के कारण राक्षसो की श्रेणी में आ गया और भगवान श्री कृष्ण ने उसका संहार किया।

माखन चोरी लीला प्रसंग पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए आचार्य श्री ने कहा कि दूध, दही, माखन को खा-खाकर कंस के अनुचर बलवान होकर अधर्म को बढावा दे रहे थे, इसलिये प्रभु ने दूध, दही, माखन को मथुरा कंस के अनुचरों के पास जाने से रोका और छोटे-छोटे ग्वाल-बालों को खिलाया जिससे वे ग्वाल-बाल बलवान बनें और अधर्मी कंस के अनुचरों को परास्त कर सकें। भगवान श्रीकृष्ण ग्वाल-बालो से इतना प्रेम करते थे कि उनके साथ बैठकर भोजन करते-करते उनका जूठन तक मांग लेते थे। आचार्य श्री ने कहा कि हम जीवन में वस्तुओं से प्रेम करते है और मनुष्यों का उपयोग करते है। ठीक तो यह है कि हम वस्तुओं का उपयोग करें और मनुष्यों से प्रेम करें। इसलिये हमेशा
से प्रेम की भाषा बोलिये जिसे बहरे भी सुन सकते हैं और गूंगे भी समझ सकते है। प्रभु की माखन चोरी लीला हमें यही शिक्षा प्रदान करती है।
कथा के समापन के अवसर पर संस्था प्रमुख श्रद्धेय स्वामी रामगोविंद दास भाई (swami ramgovind das bhai) ने श्रीमद् भागवत की आरती की। इधर कथा स्थल पर रोटरी क्लब द्वारा नेत्र जांच शिविर भी लगाया गया। शिविर में कई लोगों को आंखों की जांच भी की गई। आयोजक मण्डल ने बताया कि कल शुक्रवार को कथा में विशेष महोत्सव के रूप में श्री रुक्मिणी विवाह महोत्सव अति हर्षाेल्लास के साथ मनाया जायेगा।

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