समाचार सच, हल्द्वानी। नायब सूबेदार नेत्र सिंह, नायक दरपान सिंह और सिपाही ध्यान सिंह बसेड़ा ये सब वे शूरवीर हैं जिन्होंने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की फौज को वो धूल चटाई थी जिसे पाकिस्तान आज तक नहीं भूल पाया होगा।
नायब सूबेदार नेत्र सिंह का जन्म दिनांक 2 जनवरी 1938 को जनपद पिथौरागढ़, मुनस्यारी तहसील के ग्राम सेलमाली (बाँस बगड़) में स्वर्गीय श्री बहादुर सिंह और श्रीमती गोपुली देवी के यहां हुआ। नवंबर 1955 को जौलजीबी के मेले में गए तो थे चावल और मडुवे का आटा बेचने लेकिन खड़े हो गए जौलजीबी के मेले में चल रही फौज की भर्ती में। और संयोग देखिए कि इसमें उनका चयन भी हो गया। रानीखेत से प्रशिक्षण पूर्ण करने के बाद उन्हें 15 कुमाऊँ में तैनाती मिली। जहां विभिन्न कोर्सों में उनका परिणाम अव्वल दर्जे का रहा। जिसकी बदौलत वे भारतीय रक्षा अकादमी और इन्फेंट्री स्कूल मऊ में एक प्रशिक्षक के तौर पर नियुक्त रहे।
17 कुमाऊँ का गठन होने पर उन्हें वहां स्थानांतरित कर दिया गया। 1971 में उनकी पल्टन को भदोरिया पर कब्ज़ा करने का टास्क मिला। कंपनी कमांडर, लेफ्टिनेंट और सूबेदार साहब के घायल होने पर कंपनी की जिम्मेदारी उन पर आ गई। जब ऑब्जेक्ट मात्र 110 मीटर की दूरी पर था तो नायब सूबेदार नेत्र सिंह एक शेर की तरह अपनी कंपनी का नेतृत्व कर रहे थे कि तभी दुश्मन के एक ग्रेनेड के टुकड़ों से नायब सूबेदार नेत्र सिंह घायल हो गए। बुरी तरह घायल होने के बावजूद भी वे अपनी कंपनी के जवानों को आदेश देते रहे और हमला कामयाब हुआ।
तब पूर्वी कमान के तत्कालीन आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ने कहा था कि बांग्लादेश की सबसे खूनी लड़ाई भदोरिया में लड़ी गई जो हमारी तरफ से 17 कुमाऊँ ने लड़ी। निसंदेह बटालियन द्वारा दिखाया गया पराक्रम शूरवीरता का परिचायक है।
नायक दरपान सिंह का जन्म ग्राम मल्ली भैंसूड़ी, पोस्ट चौबाटी, डीडीहाट, पिथौरागढ़ में हुआ था। गांव के स्कूल से ही कक्षा 5 पास करने के बाद वे 11 नवंबर 1957 में भर्ती हो गए। 10 दिसंबर 1971 को भदोरिया पर हमले की करवाई के दौरान वे शहीद हो गए। उनके बलिदान के समय उनकी पुत्री मात्र 2 वर्ष और उनका पुत्र मात्र 8 माह का था। उनका परिवार गौलापार, हिम्मतपुर में रहता है। कुछ समय पूर्व ही उनकी वीर नारी श्रीमती मोतिमा देवी की मृत्यु हो गई है।
सिपाही ध्यान सिंह का जन्म 1957 में पिथौरागढ़ जिले के डीडीहाट तहसील के ग्राम लखतीगांव, चौबाटी में हुआ। वे 23 दिसंबर 1968 को कुमाऊँ रेजीमेंट में भर्ती हुए। 1971 में वे भी भदोरिया के युद्ध में शहीद हो गए। वर्तमान में इनकी वीर नारी श्रीमती माधवी देवी प्रतापपुर, चकलुवा में रहती है।
हवलदार होशियार सिंह बसेड़ा भी 10 दिसंबर 1965 को शहीद हुए थे।
समाचार सच परिवार नायब सूबेदार नेत्र सिंह, नायक दरपान सिंह, सिपाही ध्यान सिंह बसेड़ा और हवलदार होशियार सिंह बसेड़ा की शहादत को सलाम करता है और उनको नमन करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित करता है।


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