समाचार सच, धर्म डेस्क। बकरा ईद को ईदुल अजहा या ईद-उल-जुहा भी कहा जाता है। बकरा ईद लोगों को सच्चाई की राह में अपना सबकुछ कुर्बान कर देने का संदेश देती है। ईदुल अजहा को हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है। हजरत इब्राहिम अल्लाह के हुकम पर अपनी वफादारी दिखाने के लिए अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने को तैयार हो गए थे। जब हजरत इब्राहिम अपने बेटे को कुर्बान करने के लिए आगे बढ़े तो खुदा ने उनकी निष्ठा को देखते हुए इस्माइल की कुर्बानी को दुंबे की कुर्बानी में परिवर्तित कर दिया।
इसलिए मुसलमान ईदुल अजहा पर बकरे या दुंबे-भेड़ की कुर्बानी करते हैं। उपमहाद्वीप के अलावा ईदुल अजहा को कहीं भी बकरा ईद नहीं कहा जाता। ईदुल अजहा का यह नाम बकरों की कुर्बानी करने की वजह से पड़ गया। बकरा ईद के अवसर पर सबसे पहले नमाज अदा की जाती है। इसके बाद बकरे या दुंबे-भेड़ की कुर्बानी दी जाती है। कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। इसमें से एक हिस्सा गरीबों को जबकि दूसरा हिस्सा दोस्तों और सगे संबंधियों को दिया जाता है। वहीं, तीसरा हिस्सा अपने परिवार के लिए रखा जाता है।
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