रण-भूमि

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भारत माँ के वीर सिपाही,

कूद पड़े रण मतवाले।

रखते हैं अनुराग अलौकिक,

मातृभूमि के रखवाले।

गरज उठे हैं धीर प्रतापी,

दुश्मन का दिल दहलाने।

माँ चंडिका खप्पर लेकर,

दौड़ पड़ी पथ दिखलाने।

हाय-हाय मच गई शत्रु में,

वीरों के रण गर्जन से।

लहराई है विजय पताका,

अनेक अविरल मेधावाल से।

किये जिन्होंने प्राण निछावर,

तन-मन की कुर्बानी दी।

दमक उठा है आज हिमालय,

बली के शोणित की लाली सी।

दिग्विजयी जिन वीरों ने,

मातृभूमि को मान दिया।

निर्भय स्वागत किया मत्यु का,

आजादी का आव्हान किया।

उच्च हिमालय से दक्षिण तक,

सागर के उन भव्य तटों तक।

सदा रहेगी कीर्ति तुम्हारी,

साक्षी सत्य रूप दिवाकर।

-कैप्टन डी एस अधिकारी

4 कुमाऊँ

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