खतरनाक है, कम उम्र में डिप्रेशन

खबर शेयर करें

समाचार सच, स्वास्थ्य डेस्क। बचपन जीवन का ऐसा समय होता है, जिसे तनाव और चिंता से मुक्त माना जाता है। हालांकि, पिछले कुछ दशकों में तमाम वजहों से बच्चे ज्यादा चिंतित और डिप्रेशन में रहने लगे हैं। इसके लिए जितना जिम्मेदार पढ़ाई का बोझ है, उतनी ही आधुनिक जीवनशैली भी। चाहे वह अच्छी और महत्वाकांक्षी जीवनशैली पाने की चाहत हो या फिर स्कूल में पढ़ाई का दबाव, येे सभी तनाव और डिप्रेशन की वजहें हैं। इससे पहले कि यह परेशानी आपके बच्चों के जीवन में नासूर बन जाए, जनिए क्या है कम उम्र का डिप्रेशन और बच्चे कैसे पा सकते हैं इससे निजात…
क्या है कम उम्र का डिप्रेशन – कम उम्र में होने वाला डिप्रेशन या अवसाद युवावस्था में होने वाले डिप्रेशन से थोड़ा अलग है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि बच्चे अपनी चिंता और तनाव की वजह को बड़ों की तरह शब्द नहीं दे पाते। कम उम्र में परेशानियां बयां करना वाकई मुश्किल होता है। लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि उनका डिप्रेशन कम खतरनाक होता है। बच्चों में डिप्रेशन की वजह से सुसाइड के मामले भी इसी वजह से देखने को ज्यादा मिलते हैं। एक आंकलन के मुताबिक, हर 10 में से एक बच्चे को बचपन में कम से कम एक बार डिप्रेशन का सामना करना पड़ता है। हालांकि, यह आंकड़ा विदेशों में किए गए शोध के आधार पर सामने आया है लेकिन हमारा देश भी काफी हद तक पश्चिमी देशों की जीवनशैली की तरफ बढ़ रहा है।
क्या हे लक्षण ? बच्चों में डिप्रेशन की शुरूआत उनकी सोच और व्यवहार में बदलाव के साथ होती है। उनकी पढ़ाई पर भी असर दिखने लगता है। यह भी मुमकिन है कि अचानक स्कूल से उनका मन उचटने लगे। दोस्तों से न मिलना-जुलना भी इसकी ही एक अहम निशानी है। दूसरी तरफ, यह भी होता है कि बच्चा स्कूल के लिए निकले तो सही लेकिन स्कूल की जगह कहीं और चला जाए। दरअसल, इस हालात में उनका कुछ भी करने का मन नहीं करता और वे ज्यादा से ज्यादा वक्त घर से बाहर ही बिताना पसंद करते हैं। छोटी-छोटी बातों पर खीझना और विद्रोह करना भी डिप्रेशन की ही निशानी होती है।
कैसे पा सकते हैं निजात ? डिप्रेशन का इलाज करने लिए तमाम तरीके हैं। शुआत उनके साथ वक्त बिताने से कीजिए। उन्हें छोटी-छोटी गलतियों पर डांटना बंद कर दीजिए और अगर दिक्कत ज्यादा बढ़ चुकी हो, तो डॉक्टर से सलाह लेकर दवा या मनोचिकित्सा शुरू कर दीजिए। घर और स्कूल के लोग ही अहम भूमिका निभा सकते हैं। कुछ मामलों में बच्चों को हॉस्पिटल में भर्ती करके सही इलाज कराना बेहद जरूरी है।
यहां आपको यह बात याद रखने की जरूरत है कि डिप्रेशन दोबारा उनके दिमाग में घर कर सकता है। इसलिए, कभी भी इलाज को रोकने की गलती नहीं कीजिए। एक और अहम बात यह है कि अपने बच्चों की तुलना कभी दूसरों से न कीजिए। इससे उनके दिमाग पर काफी बुरा असर पड़ता है। उनकी गलियों पर सजा देना भी भारी पड़ सकता है। इसके बजाए उन्हें समझाने की कोशिश कीजिए।

सबसे पहले ख़बरें पाने के लिए -

👉 हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ें

👉 फेसबुक पर जुड़ने हेतु पेज़ लाइक करें

👉 यूट्यूब चैनल सबस्क्राइब करें

हमसे संपर्क करने/विज्ञापन देने हेतु संपर्क करें - +91 70170 85440