समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। 7 सितंबर को भाद्रपद पूर्णिमा के साथ पितृपक्ष आरंभ होगा। इसके आरंभ होने के दिन ही पूर्ण चंद्रगहण का योग भी है। सनातन धर्म में पितरों के श्राद्ध और तर्पण के लिए पितृपक्ष को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार मनुष्यों के लिए देव ऋण, पितृ ऋण, ऋषि ऋण माने गए हैं। मातृ माता-पिता आदि के उद्देश्य से श्रद्धा पूर्वक जो प्रिय भोजन दिया जाता है वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध करने से कुल में वीर, निरोगी, शतायु एवं श्रेय प्राप्त करने वाली संततियां उत्पन्न होती हैं। इस बार 7 सितंबर भाद्र पूर्णिमा या श्राद्ध पूर्णिमा से पितृपक्ष की शुरुआत होगी और आश्विन कृष्ण अमावस्या यानी 21 सितंबर तक पितरों का तर्पण और श्राद्ध किया जाएगा। मृत्यु की तिथि के अनुसार पक्ष की खास तिथि को तर्पण दिया जाता है। इसमें कुश के बने उपकरणों से तिल के साथ पूर्वजों को जल का तर्पण दिया जाता है। श्राद्ध कर्म तीन पीढ़ियों का ही होता है। इसमें मातृकुल और पितृकुल (नाना और दादा) दोनों शामिल होते हैं। तीन पीढ़ियों से अधिक का श्राद्ध कर्म नहीं होता है। हां, ज्ञात-अज्ञात के नाम का श्राद्ध कर्म अवश्य करना चाहिए।
चंद्रग्रहण की वजह से समय पर कर लें श्राद्ध, तर्पण-
इस साल पूर्णिमा का श्राद्ध सूतक लगने से पूर्व कर लें। पंचांग के अनुसार सूतक काल 12 बजकर 19 मिनट से शुरू हो जाएगा। सूतक काल में कोई भी धार्मिक कार्य नहीं किए जाते हैं, इसलिए 12 बजकर 19 मिनट से पहले ही श्राद्ध, तर्पण कर लें।
ऐसे करें तर्पण-
पितृपक्ष में दक्षिण की ओर मुख करके पितरों का ध्यान करते हुए उनका तर्पण करना चाहिए। भोजन बनाने के बाद पंच ग्रास अर्थात गाय, कुत्ता, कौआ, कीट व पतंगा के भाग को निकालकर व ब्राम्हण को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए। पितृपक्ष में तर्पण, ब्रह्मभोज व दान करने से पित्र ऋण से मुक्ति मिलती है।

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