समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। देहरादून। डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने बताया की हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। वहीं सभी एकादशियों में देवउठनी एकादशी एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है क्योंकि इस दिन चातुर्मास की समाप्ति के साथ ही सभी मांगलिक कार्य भी शुरू हो जाते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। इन दिन भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति के लिए साधकों द्वारा व्रत भी किया जाता है।


देवउठनी एकादशी को प्रबोधनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन ही चातुर्मास की समाप्ति मानी जाती है। बता दें कि अधिक मास पड़ने के कारण इस साल चातुर्मास 5 महीनों का होगा। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि का प्रारम्भ 22 नवम्बर रात 11 बजकर 03 मिनट से होगा। वहीं, इसका समापन 23 नवंबर, रात 09 बजकर 01 मिनट पर हो रहा है। ऐसे में देवउठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी का व्रत 23 नवंबर, गुरुवार के दिन किया जाएगा।
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं। माना जाता है कि इसी दिन से भगवान श्रीहरि क्षीरसागर में विश्राम करने चले जाते हैं। इसलिए इस तिथि से सभी मांगलिक कार्य जैसे – विवाह, मुंडन, जनेऊ संस्कार कार्यों पर रोक लगा जाती है। वहीं, देवउठनी एकादशी तिथि पर जब भगवान विष्णु अपनी निद्रा से जागते हैं तब चातुर्मास समाप्त मानी जाती है और सभी मांगलिक कार्यों का भी शुभारंभ हो जाता है। साथ ही देवउठनी एकादशी एक अबूझ मुहूर्त भी है अर्थात इस दिन सभी मांगलिक और धार्मिक कार्य बिना मुहूर्त देखे शुरु किए जा सकते हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, देवउठनी एकादशी के अगले दिन यानी द्वादशी तिथि के दिन भगवान विष्णु और तुलसी जी का विवाह किया जाता है। द्वादशी तिथि प्रारम्भ 23 नवम्बर रात 09 बजकर 01 मिनट पर हो रहा है। वहीं इसका समापन 24 नवम्बर शाम 07 बजकर 06 मिनट पर होगा। ऐसे में 24 नवम्बर, शुक्रवार के दिन तुलसी विवाह किया जाएगा।

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