मी एक दिन ज़रूर लौट बे औला…

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ओ मेरा दाज्यू ओ मेरा भुला, छुट गौ मेरा जो छुट गो मेरा दुन सोला।
अरे छुट गो मेरा बचपन, छुट गो माल गोट,छुट गो मेरा छान।
छुट गो मेरा मिर्चा बाड़,छुट गईं किलमोरा जाड़।
छुट गो मेरा पहाड़ी आलू,छुट गो मेरा हिसालू।
छुट गो ऊ धुपरी घाम,छुट गो हमरा डावाक आम।
घुस घुटी खेल बेर फाट जाछी सी सुराव,दुद खा जाची छी आमक बिराव।
काकड़ चुरान में कतू बार खाई गई,जब नजर लाग जाच्छी तो,आम मंतरेन राई।
अलमारी बटी चवनप्राश चूरान में आम देनी हमें गाई,एक आसुं निकलड़न में,।
बुड़ बाडिक लग जनी है हाई।खाची हम भटक चुड़कनी,खाची हम गौहतक दुबुक, ना हमुल आमाक कोइं मान,ना कोईं मान बुबुक।
सूख गई अब धारा, सूख गई अब नौला, तू मेरा इंतज़ार कर ए पहाड़ा, मी एक दिन ज़रूर लौट बे औला।

-भूपेन्द्र सिंह

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