समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी या आंवला नवमी कहा जाता है। अक्षय नवमी का दिन भगवान विष्णु की भक्ति और आंवले के पूजन का दिन है। हिंदू धर्म में इस दिन को बेहद ही शुभ माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु का वास होता है, इसलिए इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने से घर में सुख, समृद्धि और आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन श्रद्धालु सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और फिर आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन बनाते हैं। इस भोजन को पहले श्री हरि को भोग लगाकर बाद में परिवार और ब्राह्मणों को परोसा जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। यानी ऐसा फल जो कभी नष्ट नहीं होता और जीवन में निरंतर वृद्धि देता है।
अक्षय नवमी की तिथि-
नवमी तिथि प्रारम्भ – अक्टूबर 30, 2025 को 10.06 ए एम बजे
नवमी तिथि समाप्त – अक्टूबर 31, 2025 को 10.03 ए एम बजे
क्यों कहा जाता है इसे आंवला नवमी?
पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी, तब तीन पग में उन्होंने पूरी पृथ्वी माप ली और राजा बलि को पाताल लोक भेज दिया। राजा बलि की पत्नी विंध्यावली ने भगवान विष्णु से अपने पति की मुक्ति के लिए प्रार्थना की। विष्णु जी ने वरदान दिया कि आंवले के वृक्ष की पूजा से राजा बलि को मोक्ष मिलेगा। तभी से इस दिन आंवले की पूजा का विधान शुरू हुआ। कहा जाता है कि इस दिन आंवले के पेड़ में भगवान विष्णु के साथ भगवान शिव का भी वास रहता है। इसलिए आज के दिन आंवले का दान, सेवन और उसकी पूजा करने से न केवल पापों से मुक्ति मिलती है बल्कि व्यक्ति के जीवन में मां लक्ष्मी और श्रीहरि विष्णु की कृपा स्थायी रूप से बनी रहती है।
पूजा-विधि
- सुबह स्नान के बाद आंवले के वृक्ष के नीचे स्थान को साफ करें।
- फिर हल्दी, चावल, कुमकुम या सिंदूर से वृक्ष की पूजा करें।
- भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी के नाम का ध्यान करें।
- शाम के समय आंवले के नीचे घी का दीपक जलाएँ।
- वृक्ष की सात परिक्रमा करें और परिवार या मित्रों को प्रसाद बाँटें।
आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने का विशेष महत्व है, यह अत्यंत शुभ माना गया है।
आंवले की पूजा का फल
आंवला नवमी पर की गई पूजा का फल अक्षय होता है यानी कभी समाप्त नहीं होता। इस दिन किए गए जप, तप और दान से पाप नष्ट होते हैं,और व्यक्ति के जीवन में सुख, सौभाग्य और समृद्धि का आगमन होता है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन आंवले का सेवन करता है, उसके जीवन में सेहत और वैभव दोनों बने रहते हैं।
उपाय-
- इस दिन सुबह स्नान के बाद आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्वाभिमुख होकर बैठें। आंवले की जड़ में दूध-जल अर्पित करें।
- आंवले के वृक्ष की पूजा-अर्चना करें। हल्दी, चावल, कुमकुम, पुष्प चढ़ाएं, घी-दीप जलाएं। उसके बाद वृक्ष की 108 बार परिक्रमा करें।
- आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करना या वृक्ष नीचे भोजन बनाकर परिवार के साथ बैठकर भोग लगाना श्रेष्ठ माना गया है।
- इस दिन दान-पुण्य करना विशेष फलदायी है। जैसे आंवला वृक्ष के नीचे भोजन का वितरण, जरूरतमंदों को अन्न-वस्त्र देना।
- घर में आंवले का पौधा लगाना शुभ माना गया है। विशेष रूप से पूर्व या उत्तर दिशा में। इससे सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है।
मंत्र-
ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः।ष्- यह मंत्र अक्षय नवमी के दिन 108 बार जपना चाहिए। इससे मन शांत होता है, नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है।
आंवला पूजन मंत्र- “ऊँ धात्री वृक्षाय नमः।” यह मंत्र आंवले के पेड़ की पूजा करते समय बोलें। आंवले को ‘धात्री वृक्ष’ कहा गया है- जो आयु, आरोग्य और संपन्नता देता है।
विष्णु-लक्ष्मी आराधना मंत्र- “ऊँ श्रीं विष्णवे नमः। ऊँ श्रीं लक्ष्म्यै नमः।” इस मंत्र का संयुक्त जप करने से दांपत्य सुख, धन-समृद्धि और सौभाग्य स्थायी होता है।

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