समाचार सच, स्वास्थ्य डेस्क। पितृपक्ष में पितरों का तर्पण और श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है. पितृपक्ष में पितर देव स्वर्गलोक से धरती पर परिजनों से मिलते हैं। ये दोष धन, सेहत और अन्य कई तरह बाधाओं को आमंत्रित करता है। पितृ पक्ष में कई मान्यताएं प्रचलित हैं इनमें से एक है श्राद्ध में बाल कटवाना। इसके पीछे धार्मिक मान्यता ये है कि श्राद्ध के दिनों में बाल कटवाना एक तरह से सुंदर होने से जुड़ा है। चुकिं ये शोक का समय होता है इसलिए बाल, नखुल आदि काटने से मना किया जाता है। लेकिन ज्योतिषियों के अनुसार ग्रंथों में इस प्रकार का कोई उल्लेख नहीं है. ये सुनी-सुनाई या किसी के अनुभव से प्रेरित होती बातें हैं, जो अब परंपरा बन चुकी हैं।
बाल और नाखून न कटवाने का वैज्ञानिक कारण
ज्योतिषाचार्य और रिटायर्ड इंजीनियर अनिल पांडे के अनुसार पितृ पक्ष कोई सुख का त्योहार तो है नहीं इसलिए इन दिनों में दुख व्यक्त करने के लिए बाल और नाखून नहीं काटे जाते। बाल और नाखून न कटवाने से प्रतीत होता है कि हम शोक में हैं। यानि ये एक तरह से दुख व्यक्त करने का तरीका है।
बाल और नाखून न कटवाने का धार्मिक कारण
बाल और नाखून न कटवाने के पीछे जो धार्मिक कारण बताया गया है। उसके मुताबिक नौरात्रि में भगवान की साधना की जाती है। जिस तरह नौरात्रि में बाल और नाखून काटना वर्जित होता है। उसी तरह पितृ देव भी हमारे लिए भगवान स्वरूप हैं। इसलिए इस दौरान भी नाखून और बाल नहीं काटना चाहिए।
ब्रह्मचर्य का पालन करें
धर्म ग्रंथों के अनुसार, श्राद्ध पक्ष के दौरान पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। मन, वचन और कर्म तीनों के माध्यम से किसी रूप में ब्रह्मचर्य व्रत टूटना नहीं चाहिए। यानी किसी भी तरह के अनुचित विचार में मन में नहीं आना चाहिए. सात्विकता का पालन करते हुए ये 16 दिन पत्नी से दूर रहने का नियम है।
ऐसे बर्तन व आसन का करें उपयोग
पुराणों के अनुसार, श्राद्ध के भोजन के लिए सोने, चांदी, कांसे या तांबे के बर्तन उत्तम माने गए हैं। इनके अभाव में दोना-पत्तल का उपयोग किया जा सकता है। लोहे के आसन पर बैठकर श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए. रेशमी, कंबल, लकड़ी, कुशा आदि के आसन श्रेष्ठ हैं। (साभार)







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