6 अगस्त को सिंधारा दूज मनाई जाएगी, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त और अचूक उपाय

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समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। सिंधारा दौज/ सिंधारा दूज का पर्व प्रतिवर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 6 अगस्त को मनाया जाएगा। यह पर्व हरियाली तीज की शुरुआत का पर्व है। इस दिन के शुभ मुहूर्त और अचूक उपाय जानकर आपको लाभ होगा। यह पर्व चौत्र माह में भी आता है।

कब है सिंधारा दोज: सावन शुक्ल पक्ष द्वितीया के दिन। दिनांक 6 अगस्त 2024 मंगलवार को सिंधारा दूज रहेगी।

शुभ मुहूर्त –
ब्रह्म मुहूर्तः प्रातः 04.21 से 05.03 तक।
प्रातः सन्ध्याः प्रातः 04.42 से 05.45 तक।
अभिजित मुहूर्तः दोपहर 12.00 से 12.54 तक।
विजय मुहूर्तः दोपहर 02.41 से 03.34 तक।
अमृत कालः दोपहर 03.06 से 04.51 तक।
गोधूलि मुहूर्तः शाम 07.08 से 07.29 तक।
सायाह्न सन्ध्याः शाम 07.08 से 08.12 तक।

सिंधारा दूज के उपाय

  • सिंधारा दूज पर मंदिर में सिन्दूर चढ़ाने और प्रसाद में मिला सिन्दूर अपनी मांग में लगाने से पतियों की उम्र लंबी होती है। सिंधारा दूज पर, कई विवाहित महिलाएं अपने पतियों की सलामती के लिए पूजा करने के लिए मंदिरों में जाती हैं। माता को 16 श्रृंगारा का सामान अर्पित करती हैं।
  • गरीबों को गुड़ का दान करें। मान्यता है कि इससे धन संबंधी समस्याएं दूर होती है।
  • चावल और दूध से बनी खीर का दान करना शुभ माना जाता है। इससे जीवन में सफलता के लिए बंद पड़े सभी मार्ग खुलते हैं।
  • इस दिन किसी गरीब को सफेद रंग के वस्त्र का दान करें। इससे जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। साथ ही चंद्र देव और भगवान शिव की भी कृपा मिलेगी।
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सिंधारा दूज क्या है? यह पर्व हरियाली तीज के एक दिन पहले आता है। इस दिन मां ब्रह्मचारिणी की भी पूजा की जाती है। शाम में, देवी को मिठाई और फूल अर्पण कर श्रद्धा के साथ गौरी पूजा की जाती है। सिंधारा दूज को सौभाग्य दूज, गौरी द्वितिया या स्थान्य वृद्धि के रूप में भी जाना जाता है। सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और संपूर्ण परिवार के स्वास्थ्य की कामना से यह व्रत करती हैं।

सिंधारा दोज के दिन व्रतधारी महिलाएं पारंपरिक पोशाक पहनती हैं, हाथों में मेहंदी लगाती हैं और आभूषण पहनती हैं। इस दिन महिलाएं एक-दूसरे के साथ उपहारों का आदान-प्रदान करती हैं। चूड़ियां इस उत्सव का खास अंग है। वास्तव में, नई चूड़ियां खरीदना और अन्य महिलाओं को इसका उपहार देना इस उत्सव की एक दिलचस्प परंपरा है।

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दरअसल, मुख्य रूप से यह बहुओं का त्योहार है। इस दिन सास अपनी बहुओं को भव्य उपहार प्रस्तुत करती हैं, जो अपने माता-पिता के घर में इन उपहारों के साथ आती हैं। सिंधारा दूज के दिन, बहूएं अपने माता-पिता द्वारा दिया गया ‘बाया’ लेकर वापस अपने ससुराल आती हैं। ‘बाया’ में फल, व्यंजन, मिठाइयां और धन शामिल होता है। शाम को गौरी माता/ देवी पार्वती की पूजा करने के बाद, वह अपनी सास को यह ‘बाया’ भेंट करती हैं।

सिंधारा दूज के दिन लड़कियां अपने मायके जाती हैं और इस दिन बेटियां मायके से ससुराल भी आती हैं। मायके से बाया लेकर बेटियां ससुराल आती हैं। तीज के दिन शाम को देवी पार्वती की पूजा करने के बाद ‘बाया’ सास को दे दिया जाता है। इस तरह यह पर्व मनाया जाता है। इसके अगले दिन भाद्रपद कृष्ण तृतीया तिथि पर हरियाली तीज मनाई जाती है।

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