कुछ याद उन्हें भी कर लो… जो लौट के घर न आए…

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– वे एक पहलवान कुश्तीबाज होने के साथ-साथ एक तेज तर्रार कमांडो भी थे।

समाचार सच, हल्द्वानी। आज ही के दिन ऑपरेशन पराक्रम में सूबेदार मेजर (ऑनरेरी लेफ्टिनेंट) धरम सिंह शहीद हो गए थे। समाचार सच परिवार शहीद सूबेदार मेजर (ऑनरेरी लेफ्टिनेंट) धरम सिंह की शहादत को सलाम करता है और उनको नमन करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

मेजर बी एस रौतेला के अनुसार सूबेदार मेजर (ऑनरेरी लेफ्टिनेंट) धरम सिंह  मूल रूप से जनपद पिथौरागढ़ के सीमांत तहसील धारचूला के ग्राम पांगला में दिनांक 2/4/1951 को पैदा हुए थे। इनके पिता जी का नाम  श्री हर सिंह बिष्ट और माता जी का नाम श्रीमती द्रौपदी देवी था। उनका बचपन गांव में ही बीता। उसी माटी में पले, बढ़े हुए और वहीं से प्रारंभिक शिक्षा और पांगला से ही कक्षा दसवीं उत्तीर्ण करते ही भारतीय सेना में भर्ती हो गए। उनके व्यक्तित्व, मेहनत देशभक्ति के जज्बे से वे पैरा रेजीमेंट के लिए चयनित हो गए। पैरा रेजीमेंट में उनकी पहचान एक अनुशासित सिपाही के साथ-साथ एक पहलवान कुश्तीबाज के रूप में भी हुई। वे एक तेज तर्रार कमांडो भी थे। उन्हें समय-समय पर पदोन्नति मिलती रही और वे सूबेदार मेजर के पद पर पदोन्नत हो गए। अपनी सेवा काल में उन्होंने कई ऑपरेशनों में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। ऑपरेशन पवन(श्री लंका) में भी उन्होंने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनके सेवा काल का अधिकांश समय छोटे-बड़े ऑपरेशन में ही बीता। वर्ष 2002 में ऑपरेशन पराक्रम शुरू हुआ जिसमें उनकी पलटन को भी पंजाब में पाकिस्तान सीमा पर तैनात किया गया। ऑपरेशन पराक्रम में ही सूबेदार मेजर ऑनरेरी लेफ्टिनेंट धरम सिंह साहब शहीद हो गए।

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वर्तमान में उनकी वीर नारी श्रीमती जयमती बिष्ट अपने दोनो पुत्रों श्री हरीश बिष्ट और श्री पुष्कर बिष्ट के परिवार के साथ मुखानी में निवास करती हैं।

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