देश के लिये मर मिटने वाले थे नैनीताल जिले के पहले वीर चक्र विजेता कैप्टन माधो सिंह

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-विगत 4 अप्रैल को हुआ बरेली के श्रीराममूर्ति में निधन
-21 नवम्बर 1947 में भारतीय सेना की टुकड़ी पर हुए अचानक हमले में माधो सिंह ने कबाइलियों के मनसूबों पर फेर दिया था पानी

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समाचार सच, हल्द्वानी। देश लिये मर मिटने वाले नैनीताल जिले के पहले वीर चक्र विजेता कैप्टन माधोे सिंह ने विगत 4 अप्रैल 2019 को बरेली के श्रीराममूर्ति में उपचार के दौरान अन्तिम सांस ली। वह 101 वर्ष के थे। कैप्टन के निधन पर देश के सैनिक व पूर्व सैनिकों का कहना है कि उन्हें देश में वीर सैनिक के रूप में हमेशा याद किया जायेगा।
यहां नैनीताल जिले के हल्द्वानी महानगर के डिफेन्स कालोनी, हरिपुर नायक कुसुमखेड़ा के रहने वाले सूबेदार मेजर (ऑनरेरी कैप्टन) माधो सिंह 1968 में भारतीय सेना से रिटायर्ड होने के बाद हल्द्वानी के हरिपुर नायक में बस गए थे। उनके चार बेटे और दो बेटियां हैं। चारों बेटे हल्द्वानी में ही रहते हैं, जबकि बेटियां दिल्ली में रहती हैं।

कैप्टन माधोे सिंह का जीवन परिचय:
मूल रूप से बागेश्वर जिले के रहने वाले माधो सिंह हैदराबाद रेजीमेंट में भर्ती हुए थे। कुछ समय बाद ही वह पैरा कुमाऊं में शामिल हो गए। 1947-48 के भारत-पाक युद्ध में उनकी जब पलटन पुंछ-लेह में तैनात थी, उस दौरान उन्होंने भारत की जीत में बड़ा योगदान देते हुए वीरता व साहस का परिचय दिया, जिसके लिए उन्हें वीर चक्र से नवाजा गया। माधो सिंह जिले के पहले वीर च्रक विजेता थे। कुछ दिनों पहले ही परिवार में उनका 101वां जन्मदिन मनाया गया था। इसके कुछ दिन बाद से ही उनकी तबीयत बिगड़ गई थी, जिसके बाद उन्हें बरेली के राममूर्ति हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था, जहां 4 अप्रैल 2019 को तड़के उनका निधन हो गया।

वीर कैप्टन माधोे सिंह के कारनामें:
21 नवम्बर 1947 सुबह के 7ः30 बजे कबाइलियों ने अचानक भारतीय सेना की टुकड़ी पर हमला बोल दियाद्य कैप्टन माधो सिंह भी इसी टुकड़ी के साथ थे। दुश्मन की तरफ से भयँकर गोलाबारी हुई जिसमें हमारे कई जवान शहीद और घायल हुए। अब दुश्मन चाह रहा था कि सभी महत्वपूर्ण पोस्ट्स पर उनका कब्जा हो जाये और हमें चारों तरफ से घेर लिया जाए। तभी कैप्टेन माधो सिंह अपनी जान की परवाह नहीं करते हुए अपने दो सहयोगियों नैन सिंह और मंगल सिंह और एक लाइट मशीन गन लेकर 600 यार्ड के खुले मैदान में दुश्मनों की भारी गोलाबारी के बीच दौड़ पड़े और एक बहुत ही महत्वपूर्ण पोस्ट पर कब्जा करने में सफल रहे। कैप्टेन माधो सिंह ने दुश्मन के ऊपर जबरदस्त फायर खोल दिया जिसके कारण हमारी टुकड़ियां अन्य पोस्ट को कब्जा करने में कामयाब हुई। कैप्टेन माधो सिंह की इसी पोस्ट की वजह से दुश्मन के 3 लगातार हमले विफल हुए। 10ः30 घण्टे तक चले इस भीषण युद्ध में दुश्मनों ने इस पोस्ट को खामोश करने की बहुत कोशिश की परन्तु कैप्टेन माधो सिंह की बहादुरी और दृढ़ इच्छाशक्ति के आगे दुश्मन की हर गोली हार गई। इतना ही नहीं उन्होंने दुश्मनों को हमारे ट्रक से हथियार और गोलाबारूद लूटने से भी बचाया। जिस लड़ाई को दुश्मन कुछ ही घंटों में जीत सकता था उसे कैप्टेन माधो सिंह ने एक करारी हार में परिवर्तित कर दिया।
उनके पुत्र श्री भूपेंद्र सिंह बिष्ट जी ने बताया कि वे 1962 के भारत चीन युद्ध में एक साल तक युद्धबन्दी रहे। इतना ही नहीं उन्होंने 1965 के भारत -पाकिस्तान युद्ध में भी भाग लिया। साथ ही 176 बार पैराशूट से कूदकर एक शानदार रिकॉर्ड बनाया था।

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