The festival of Rakhi will be celebrated for 2 days, the festival of Rakshabandhan: Dr. Acharya Sushant Raj

समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। (देहरादून)। राखी का नाम सुनते ही बस बचपन की यादें फिर से घरौंदा बनाने लगती है। पर पहले की बात कुछ और थी जब राखी के आने से कई दिनों पहले घर में त्यौहार जैसा महसूस होने लग जाता था, भाई बहन अपनी अपनी तैयारियों में व्यस्त हो जाते थे, यहाँ तक कि सबसे सुंदर राखी बनाने या खरीदने की होड़ लग जाती थी, और दुनियां भर के रिश्तों में भाई बहन के रिश्तों को सहेज ही लेते थे, और ऐसा नहीं है कि चचेरे, ममेरे भाई बहनों के प्यार में कोई अंतर नजर आता हो। राखी हर साल अपने साथ फिर से वो बचपन की यादें सँजोने का मौका देती है कि आओ जीलो वही जिंदगी से, जिम्मेदारियां तो मरते दम तक पीछा नही छोड़ने वाली, पर हाँ ये दिन निकल गया तो साल भर का इंतजार कराएगा। फिर से वही नोकझोंक वही मिठाईयों की लड़ाई, वही गुल्लक में पैसे जमा करना और इंतजार किसी खास मौके।
डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने बताया की इस बार अधिकमास के चलते रक्षाबंधन समेत कई व्रत और त्योहार देर से होंगे। हिंदू पंचांग के अनुसार हर 3 वर्ष बाद अधिकमास जिसे मलमास भी कहा जाता है वह आता है जिसके कारण एक महीने का अतिरिक्त समय बढ़ जाता है। 16 अगस्त से अधिकमास खत्म हो गया हैं, अब व्रत-त्योहार आरंभ हो जाएंगे। अधिकमास खत्म होने के बाद रक्षाबंधन का त्योहार माना जाएगा। हिंदू धर्म में रक्षाबंधन के पर्व का विशेष महत्व होता है। पूरे देश में रक्षाबंधन के त्योहार को भाई-बहन के आपसी प्रेम के रूप में बहुत ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। रक्षाबंधन पर बहनें अपने भाईयों की कलाई में राखी बांधती हैं और उनकी लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए भगवान से कामना करती हैं। इसके बदले में भाई बहन के जीवन में आने वाली हर एक मुसीबत से उसी रक्षा करने का संकल्प लेता है। रक्षाबंधन पर बहनें भाई के माथे पर तिलक लगाते हुए आरती करती हैं और मिठाई खिलाती हैं। फिर भाई अपने बहनों को उपहार देते हैं।
डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने कहा की हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। इस बार श्रावण पूर्णिमा तिथि दो दिन यानी 30 और 31 अगस्त को पड़ रही है, साथ ही श्रावण पूर्णिमा तिथि पर भद्रा का साया भी रहेगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कभी भी रक्षाबंधन का त्योहार भद्रा का साया रहने पर नहीं मनाया जाता है। भद्रा काल में बहनों को भाई की कलाई में राखी बांधना वर्जित होता है। भद्रा काल के समय को बहुत ही अशुभ माना गया है और इस दौरान किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं किया जाता है।
डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने जानकारी दी की वैदिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष श्रावण माह की पूर्णिमा तिथि 30 अगस्त 2023 को सुबह 11 बजे से शुरू हो जाएगी, वहीं श्रावण पूर्णिमा तिथि का समापन 31 अगस्त को सुबह 07 बजकर 07 मिनट पर होगा। पूर्णिमा तिथि दो दिन होने की वजह से इस बार रक्षाबंधन का पर्व 2 दिन तक मनाया जाएगा। हालांकि रक्षाबंधन पर भद्रा का साया भी रहेगा। भद्रा के कारण इस वर्ष रक्षाबंधन की तिथि को लेकर मतभेद है। इस साल रक्षाबंधन पर भद्रा का साया रहेगा। हिंदू पंचांग के अनुसार 30 अगस्त को सुबह 10 बजकर 58 मिनट से भद्रा लग जाएगी। जो रात को 09 बजकर 01 मिनट तक रहेगी। इस साल भद्रा रक्षाबंधन के दिन पृथ्वी पर वास करेंगी जिस कारण से भद्रा में राखी बांधना शुभ नहीं रहेगा। वहीं दूसरी तरफ श्रावण पूर्णिमा 31 अगस्त को सुबह 07 बजकर 07 मिनट पर खत्म हो जाएगी। इस तरह से 30 अगस्त को सुबह भद्रा के लगने से पहले राखी बांधी जा सकती है और 31 अगस्त को सुबह 07 बजकर 07 मिनट से पहले राखी बांध सकते हैं।
शुभ मुहूर्त शास्त्र के अनुसार रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण माह की पूर्णिमा तिथि और अपराह्र काल यानी दोपहर के समय भद्रा रहित काल में मनाना शुभ होता है। लेकिन इस वर्ष 30 अगस्त को पूरे दिन भद्रा रहेगी। भद्रा में राखी बांधना अशुभ होता है। ऐसे में 30 अगस्त 2023 को रात 09 बजकर 03 मिनट के बाद राखी बांधी जा सकती है। वहीं 31 अगस्त को सुबह 07 बजकर 7 मिनट से पहले राखी बांध सकते हैं। धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों के अनुसार भद्रा शनिदेव की बहन और भगवान सूर्य व माता छाया की संतान हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार भद्रा का जन्म दैत्यों के विनाश के लिए हुआ था। जब भद्रा का जन्म हुआ तो वह जन्म लेने के फौरन बाद ही पूरे सृष्टि को अपना निवाला बनाने लगी थीं। इस तरह से भद्रा के कारण जहां भी शुभ और मांगलिक कार्य, यज्ञ और अनुष्ठान होते वहां विध्न आने लगता है। इस कारण से जब भद्रा लगती है तब किसी भी तरह का शुभ कार्य नहीं किया जाता है। भद्रा को 11कारणों में 7वें करण यानी विष्टि करण में स्थान प्राप्त है। वैदिक पंचांग की गणना के मुताबिक भद्रा का वास तीन लोकों में होता है। यानी भद्रा स्वर्ग, पाताल और पृथ्वी लोक में वास करती हैं। जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ और मीन राशि में मौजूद होते हैं। तब भद्रा का वास पृथ्वी लोक पर होता है। पृथ्वीलोक में भद्रा का वास होने पर भद्रा का मुख सामने की तरफ होता है। ऐसे में इस दौरान किसी भी तरह का शुभ और मांगलिक कार्य करना वर्जित होता है। भद्रा में किया गया शुभ कार्य कभी भी सफल नहीं होता है। पौराणिक कथा के अनुसार रावण की बहन ने भद्राकाल में ही राखी बांधी थी जिसके कारण रावण का भगवान राम के हाथों नाश हुआ था।
रक्षाबंधन भद्रा पूंछ: 30 अगस्त 2023 की शाम 05.30 बजे से शाम 06.31 बजे तक
रक्षाबंधन भद्रा मुख: 30 अगस्त 2023 की शाम 06.31 बजे से रात 08.11 बजे तक
रक्षाबंधन भद्रा समाप्ति समय: 30 अगस्त 2023 की रात 09 बजकर 03 मिनट पर


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