-आज के दिन यानि 30 मई 1999 को कारगिल युद्ध में हुए थे मेजर राजेश अधिकारी शहीद
समाचार सच, हल्द्वानी। अमर शहीद सैन्य अधिकारी जिसके नाम से नैनीताल जनपद के लोगों का सर गर्व से ऊँचा हो जाता है। कारगिल युद्ध में दुश्मनों से लोहा लेने वाले शहीद मेजर राजेश अधिकारी आज के दिन यानि 30 मई 1999 को शहीद हो गये थे। समाचार सच परिवार शहीद मेजर राजेश अधिकारी की शहादत को सलाम करता है और उनको नमन करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
मेजर बी एस रौतेला के अनुसार मेजर राजेश अधिकारी का जन्म 25 दिसम्बर 1970 को जनपद नैनीताल के तल्लीताल में श्री खुशाल सिंह अधिकारी और श्रीमती मालती देवी के घर में हुआ। वे मूल रूप से ग्राम ढूंगा ब्लॉक भिकियासैंण के रहने वाले थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा सेंट जोसेफ और रा.इं.का. से हुई। 12 वी उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने कुमाऊँ विश्व विद्यालय से 1992 में बी. एस.सी पास की और उसी वर्ष उनका सी. डी. एस. के माध्यम से भारतीय सेना में चयन हो गया। तत्पश्चात उन्हें 2 मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री में कमीशन मिला। वर्ष 1998 में उन्हें इन्फैंट्री के साथ 18 ग्रिनेडियर्स में तैनाती मिली। वर्ष 1999 में उनकी बटालियन को कारगिल क्षेत्र में तैनात किया गया। उन्ही दिनों पाकिस्तानी सेना ने हमारी सीमा में घुसपैठ कर दी। इसकी सूचना हमें बाद में मिली और इसकी पुष्टि तब हुई जब पाकिस्तानी सेना ने कैप्टन सौरभ कालिया की पेट्रोल पार्टी को बंदी बना लिया।
22 दिन बाद जब कैप्टन सौरभ कालिया और उनके दल के क्षत विक्षिप्त शरीर भारत लौटे तो भारतीय सेना ने इस दुस्साहस का जवाब देने के लिए ऑपेरशन विजय का शंखनाद कर दिया। दुश्मन 15,000 – 21,000 फीट ऊंची चोटी पर मजबूती से बैठा हुआ था। 90 डिग्री की खड़ी चड़ाई वाली इन चोटियों पर हमला करने का मतलब था अपनी जान बलिदान करना।
18 ग्रिनेडियर्स के कमान अधिकारी को तोलोलिंग की चोटियों पर बैठे घुसपैठियों को खदेड़ने की ज़िम्मेदारी मिली और कमान अधिकारी ने यह चुनौती भरा काम मेजर राजेश अधिकारी को दिया। मेजर राजेश अधिकारी ने पहली रात को अपने हमलावर दस्ते के साथ एडवांस किया चूकि 90 डिग्री की चढाई और ऐसे पहाड़ी पर चढना बहुत ही कठिन था और ऊपर से दुश्मन की सेना फ़ायरिंग कर रही थी तो आगे बढ़ना बहुत ही मुश्किल हो रहा था,इसी बीच उनके साथ का एक जूनियर कमीशन अधिकारी गोली लगने से शहीद हो गये। उसके बाद उजाला होने लगा तो आपरेशन रोक दिया गया।
दूसरी रात यानि (30 मई 1999) मेजर राजेश अधिकारी का हमलावर दल ज्यों ही आगे बढ़ने लगा दुश्मन ने दो ओर से भारी तादाद में फायर करना शुरु कर दिया, मेजर अधिकारी ने जहां से फायर आ रहा था उस ओर रॉकेट लांचर दागा और दुश्मन के बंकर में घुस गये, वहां दुश्मन से गुत्थगुत्था की लड़ाई हुई जिसमें उन्होंने दुश्मन के दो सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। उसके बाद वे आगे बढ़ने लगे तो दुश्मन के भारी फायर से बुरी तरह घायल हो गये लेकिन घायल होने के बावजूद भी उन्होंने उपचार के लिए पीछे आने से मना कर दिया और उसी घायलावस्था में ही दुश्मन का एक और सैनिक मार गिराया। इसी दौरान मेजर अधिकारी को और गोलियाँ लगी जिसमें भारत माता का यह वीर सपूत वही पर मां की गोद में हमेशा के लिए सो गया। 30 मई 1999 की रात मेजर राजेश अधिकारी की आखिरी रात थी।
मेजर राजेश अधिकारी की वीरता,साहस व कुशल नेतृत्व के लिए मरणोपरान्त उन्हें महावीर चक्र से अलंकृत किया गया।
दुश्मन पर हमला करने के लिए जाने से पहले मिला था पत्नी का पत्र…
मेजर राजेश अधिकारी के साथी बताते हैं कि जिस दिन मेजर अधिकारी दुश्मन पर हमला करने के लिए जा रहे थ उस समय सूर्य अस्त हो रहे थे दिखाई कम दे रहा था,उसी समय उनकी नव विवाहिता का पत्र मिला,एक बार मेजर राजेश अधिकारी ने उस पत्र को पढने की कोशिश की लेकिन फिर यह कह कर जेब में रख दिया कि कल सुबह ऑपरेशन में फ़तह हासिल करने के बाद इस पत्र को पढूगां, उनके साथी अधिकारी ने उनसे पूछा तो उन्होंने कह दिया कि इस पत्र में मेरी पत्नी ने मुझे निजी बातों के साथ अपना ध्यान रखने को लिखा होगा जिससे मैं अपने लक्ष्य से ध्यान नहीं हटाना चाहता हूं इस समय मेरे लिए मेरी पत्नी, मेरे परिवार से अधिक महत्वपूर्ण तोलोलिंग पर विजय पाना है। इतना कह कर उन्होंने अपनी ए के 47 और गोलियां और ग्रिनेड उठाये और चल दिये।


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