समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। श्रावण मास में शिवलिंग पर जल और विष चढ़ाने का धार्मिक, पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व है। यह परंपरा केवल आस्था नहीं, बल्कि गहरे प्रतीकों और कहानियों से जुड़ी है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं।
पौराणिक कथा: समुद्र मंथन और विषपान
श्रावण मास का शिव से गहरा संबंध समुद्र मंथन से जुड़ा है। जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया, तो सर्वप्रथम विष (हलाहल) निकला था। यह इतना घातक था कि तीनों लोकों को भस्म कर सकता था। तब भगवान शिव ने संपूर्ण सृष्टि की रक्षा के लिए वह विष पी लिया और उसे अपने कंठ में रोक लिया, जिससे वे नीलकंठ कहलाए।
विषपान के कारण शिव के शरीर में ताप बढ़ गया। इसलिए देवताओं ने उनके ऊपर गंगा जल चढ़ाया ताकि उनका ताप शांत रहे।
जल क्यों चढ़ाया जाता है?
-शिवजी को शीतलता प्रदान करने के लिए।
शिवलिंग पर जल चढ़ाना भगवान को प्रसन्न करने का श्रेष्ठ उपाय माना जाता है।
- यह तपस्या और भक्ति का प्रतीक है।
- मान्यता है कि जो भक्त श्रावण मास में प्रतिदिन शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
विष (धतूरा, भांग आदि) क्यों चढ़ाते हैं?
- पारंपरिक रूप से विष का प्रतीक धतूरा, आक, भांग आदि को माना गया है।
ये सभी विष की तरह उष्ण और तीव्र प्रभाव वाले पदार्थ होते हैं।
- शिवजी को ये पदार्थ प्रिय माने जाते हैं क्योंकि वे विष को स्वीकार करने वाले और नियंत्रित करने वाले देवता हैं।
धारणा है कि - जो विष का नाश करे, वही महादेव है।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अर्थ
- विष चढ़ाना हमारे भीतर की नकारात्मकता, क्रोध, अहंकार आदि को भगवान को समर्पित करने का संकेत है।
- जल चढ़ाना शुद्धता, शांत मन और श्रद्धा का प्रतीक है।
श्रावण मास का विशेष महत्व
- श्रावण मास को शिव का सबसे प्रिय महीना माना गया है।
- इस माह में शिवलिंग पर जल और बेलपत्र चढ़ाने से विशेष पुण्य मिलता है।
- श्रावण सोमवार का व्रत और शिवाभिषेक करने से सौभाग्य, सुख, और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
निष्कर्ष
श्रावण मास में शिवलिंग पर जल और विष चढ़ाना भगवान शिव के प्रति आभार, तपस्या और श्रद्धा का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि भगवान शिव न केवल जीवनदाता हैं, बल्कि विष यानी हमारे दोषों, कष्टों और दोषपूर्ण विचारों को भी अपने भीतर समाहित कर हमें मुक्त करने वाले करुणामयी देव हैं।

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