नवरात्रि के तीसरे दिन ऐसे करें मां चंद्रघंटा की पूजा, भक्तों के समस्त डर को दूर करती हैं माता रानीे

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समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। 13 अप्रैल से शुरू हुई चैत्र नवरात्रि का आज तीसरा दिन है। इस दिन मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा की पूजा होती है। ऐसी मान्यता है कि माता के ललाट पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र विराजमान है इसलिए माता को चंद्रघंटा के नाम से पुकारा जाता है। माता ने असुरों का नाश करने के लिए इस रूप को धारण किया था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां चंद्रघंटा की पूजा करने से व्यक्ति के अंदर वीरता और निर्भयता आती है और उसके समस्त डर और परेशानियां दूर हो जाती हैं।

कैसा है मां चंद्रघंटा का स्वरूप?
मां चंद्रघंटा का स्वरूप सौम्य और शांति से भरा है और देवी को कल्याणकारी माना गया है. देवी की सवारी शेर है. माता चंद्रघंटा की दस भुजाएं हैं और उन्होंने हर एक भुजा में धनुष, त्रिशुल, तलवार और गदा जैसे शस्त्रों को धारण कर रखा है। इनका रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। मां चंद्रघंटा का यह रूप मोहक और अलौकिक है और माता की कृपा से कई बार भक्त को दिव्य सुगंधियों या दिव्य ध्वनियों का भी अनुभव होता है।

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मां चंद्रघंटा की पूजा का महत्व
ऐसी मान्यता है कि मां चंद्रघंटा की पूजा करने वाले साधक की हर मनोकामना पूरी होती है. शत्रुओं का डर सता रहा हो या फिर कुंडली में ग्रह दोष की समस्या हो। मां चंद्रघंटा की पूजा से ये सारी समस्याएं दूर हो जाती हैं। हर तरह से डर को दूर कर व्यक्ति में आत्मविश्वास का संचार करती हैं मां चंद्रघंटा। मां चंद्रघंटा की पूजा करने वाले व्यक्ति के चेहरे पर एक अलग ही तेज होता है और देवी मां के आशीर्वाद से सुंदर काया भी मिलती है।

मां चंद्रघंटा की पूजा विधि
नवरात्रि के तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा के समक्ष व्रत और पूजा का संकल्प लें। इसके बाद देवी को गंगाजल से स्नान करा कर वस्त्र अर्पित करें। फिर देवी का श्रृंगार करें. सिंदूर, अक्षत, गंध, धूप-दीप, पुष्प, फल प्रसाद आदि से देवी की पूजा करें। दुर्गा चालीसा का पाठ करें। आरती के बाद ”ऊँ देवी चन्द्रघण्टायै नमः ” इस मंत्र का जाप करें। फिर माता के सामने अपनी समस्याएं और कष्ट को रखें। इस दिन मां चंद्रघंटा को दूध या दूध से बनी किसी भी मिठाई का भोग लगाएं।

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असुरों के स्वामी महिषासुर ने देवाताओं पर विजय प्राप्त कर इंद्र का सिंहासन हासिल कर लिया और स्वर्गलोक पर राज करने लगा। इसे देखकर सभी देवतागण परेशान हो गए और इस समस्या से निकलने का उपाय जानने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानी शिवजी के पास गए। यह सुनकर त्रिदेव क्रोधित हो गए और तीनों के मुख से ऊर्जा उत्पन्न हुई। देवगणों के शरीर से निकली ऊर्जा भी उस ऊर्जा से जाकर मिल गई। यह दसों दिशाओं में व्याप्त होने लगी। तभी वहां एक देवी का अवतरण हुआ। भगवान शंकर ने देवी को त्रिशूल और भगवान विष्णु ने चक्र प्रदान किया। इसी प्रकार अन्य देवी देवताओं ने भी माता के हाथों में अस्त्र शस्त्र दिए। इंद्र ने माता को एक घंटा दिया और सूर्य देव ने अपना तेज और तलवार। देवी अब महिषासुर से युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार थीं। देवी ने एक ही झटके में ही दानवों का संहार कर दिया. इस युद्ध में महिषासुर के साथ ही अन्य राक्षसों का संहार भी मां ने किया। इस तरह मां चंद्रघंटा ने सभी देवताओं को असुरों से मुक्त करवाया।

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