पानी को चबाकर पीने के लगभग 70 प्रतिशत रोग जल की अशुद्धता से ही होते हैं, आओ जानते हैं कि किस तरह से पानी पीना चाहिए

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समाचार सच, स्वास्थ्य डेस्क। शुद्ध जल से काया निरोगी होती है और अशुद्ध जल से रोगी। शुद्ध अन्न और वायु के बाद शुद्ध जल जरूरी है। अशुद्ध जल से लिवर और गुर्दों का रोग हो जाता है। यदि उक्त दोनों में जरा भी इंफेक्शन है तो इसका असर दिल पर भी पड़ता है। लगभग 70 प्रतिशत रोग जल की अशुद्धता से ही होते हैं। आओ जानते हैं कि किस तरह से पानी पीना चाहिए और क्या है जल संबंधि रोचक तथ्य।

जल को चबाते हुए पिएं –

  1. कहते हैं जल को आराम से घूंट-घूंट कर ग्रहण करना चाहिए। इससे आपकी किडनी या ग्लेन ब्लैडर पर एकदम से भार नहीं पड़ता है।
  2. जल को चबाकर पीने से यह भोजन को पचाने की शक्ति हासिल कर सकता है। चबाकर पीने का अर्थ है पहले उसे मुंह में लें और चबाते हुए पी जाएं।
  3. घूंट-घूंट करके पीना चाहिए क्योंकि इससे हमारे मुंह में मौजूद लार भी पेट में जाती है जो पाचन के लिए जरूरी होती है।
  4. खाली पेट घूंट-घूंट पानी पीने से पेट की गंदगी दूर होकर रक्तशुद्ध होता है।
  5. घूंट-घूंट पानी पीने से पेट अच्छी तरह साफ होने पर यह भोजन से पोषक तत्वों को ठीक प्रकार से ग्रहण कर पाता है।

अन्य तथ्य

  1. पानी न केवल उच्च रक्तचाप, कब्ज, गैस आदि बीमारियों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि यह हमारी हड्डियों, मस्तिष्क और हृदय को मजबूत बनाने में भी खास भूमिका निभाता है।
  2. जल का अलग-अलग तरह से उपयोग करने से सभी तरह के रोग में लाभ मिलता है। बुखार आने पर ठंडे पानी की पट्टी पेट और सिर पर रखी जाती है। पेशाब में जलन होने पर नाभि के नीचे ठंडे पानी की पट्टी रखने से लाभ मिलता है। इसी तरह के पानी के कई उपाय हैं।
  3. जल को पीतल या तांबे के गिलास में ही पीना चाहिए। सुबह ब्रश और शौचादि से पूर्व ताम्बे के लोटे में रात्रि को रखा पानी पीएं, इससे मल खुलकर आता है तथा कब्ज की शिकायत नहीं होती है।
  4. पानी आपके रक्त से घातक तत्वों को बाहर निकालता है जिससे त्वचा चमकदार बनती है।
  5. पानी का उचित तरीके से सेवन करने से शरीर का मेटाबॉलिज्म बढ़ जाता है जिससे वजन कम होता है।
  6. जल न कम पीएं और न ही अत्यधिक। कहीं का भी जल न पीएं। जल हमेशा छानकर और बैठकर ही पीएं।
  7. भोजन के ठीक पहले, भोजन करने के दौरान और भोजन के बाद कभी पानी नहीं पीना चाहिए। हालांकि भोजन के दौरान घुंट-घुंट करने 2 से 3 बार पी सकते हैं। भोजन के 1 घंटे पहले और भोजन के 1 घंटे बाद पानी पी सकते हैं। रात को सोने के 3 घंटे पूर्व पानी पीना बंद कर दें और भोजन भी 3 घंटे पूर्व कर लेना चाहिए।
  8. सुबह खाली पेट पानी पीने से मांसपेशियां और नई कोशिकाएं बनती हैं।
  9. खाली पेट पानी पीने से लाल रक्त कणिकाएं जल्दी बनने लगती हैं। इससे मासिक धर्म, कैंसर, डायरिया, पेशाब संबंधी समस्याएं, टीबी, गठिया, सिरदर्द व किडनी के रोगों में आराम मिलता है।
  10. चांदी के ग्लास में पानी पीने से सर्दी-जुकाम की समस्या दूर होती है।
  11. पीतल के बर्तन में पानी पीने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। गुरुत्व का बल बढ़ता है। पाचन तंत्र सुधरता है।
  12. तांबे के गिलास में पानी पीने से शरीर के दूषित पदार्थ यूरिन और पसीने से बाहर निकलते हैं। ब्लड प्रेशन नियंत्रित रहता है और शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है। पेट संबंधी विकार भी दूर होते हैं। तांबा पानी को शुद्ध करने के साथ ही शीतल भी करता है तांबे के गिलास में पानी पीने से त्वचा संबंधी रोग भी नहीं होते हैं। तांबे का पानी लीवर को स्वस्थ रखता है।
  13. आयुर्वेद के अनुसार सबसे अच्छा पानी बारिश का होता है। उसके बाद ग्लेशियर से निकलने वाली नदियों का, फिर तालाब का पानी, फिर बोरिंग का और पांचवां पानी कुएं या कुंडी का।
  14. जल को पवित्र करने की प्रक्रिया कई तरह की होती है। प्रमुख रूप से जल को पवित्र करने के तीन तरीके हैं- पहला भाव से, दूसरा मंत्रों से और तीसरा तांबे और तुलसी से।
  15. आचमन करते वक्त भी पवित्र जल का महत्व माना गया है। यह जल तांबे के लोटे वाला होता है। आचमन करते वक्त इसे ग्रहण किया जाता है जिससे मन, मस्तिष्क और हृदय निर्मल होता है। इस जल को बहुत ही कम मात्रा में ग्रहण किया जाता है जो बस हृदय तक ही पहुंचता है।
  16. उचित तरीके और विधि से पवित्र जल को ग्रहण किया जाए तो इससे कुंठित मन को निर्मल बनाने में सहायता मिलती है। मन के निर्मल होने को ही पापों का धुलना माना गया है।
  17. जल से ही कई तरह के स्नान के अलावा योग में नेति क्यिा, कुंजल क्रिया, शंखप्रक्षालन और वमन किया होती है। अतः जल का बहुत महत्व होता है।
  18. यह माना जाता है कि गंगा में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं। गंगा नदी के जल को सबसे पवित्र जल माना जाता है। इसके जल को प्रत्येक हिंदू अपने घर में रखता है। गंगा नदी दुनिया की एकमात्र नदी है जिसका जल कभी सड़ता नहीं है। वेद, पुराण, रामायण महाभारत सब धार्मिक ग्रंथों में गंगा की महिमा का वर्णन है।
  19. रात के चौथे प्रहर को उषा काल कहते हैं। रात के 3 बजे से सुबह के 6 बजे के बीच के समय को रात का अंतिम प्रहर भी कहते हैं। यह प्रहर शुद्ध रूप से सात्विक होता है। इस प्रहर में जल की गुणवत्ता बिल्कुल बदल जाती है। इसीलिए यह जल शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद होगा है।
  20. उषापान करने से कब्ज, अत्यधिक एसिडिटी और डाइस्पेसिया जैसे रोगों को खत्म करने में लाभ मिलता है। उषापान करने वाले की त्वचा भी साफ और सुंदर बनी रहती है। प्रतिदिन उषापान करने से किडनी स्वस्थ बनी रहती है। प्रतिदिन उषापान करने से आपको वजन कम करने में भी लाभ मिलता है। उषापान करने से पाचन तंत्र दुरुस्त होता है।
  21. श्काकचण्डीश्वर कल्पतन्त्रश् नामक आयुर्वेदीय ग्रन्थ के अनुसार रात के पहले प्रहर में पानी पीना विषतुल्य, मध्य रात्रि में पिया गया पानी दूध सामान और प्रातः काल (सूर्याेदय से पहले उषा काल में) पिया गया जल मां के दूध के समान लाभप्रद कहा गया हैं। सामान्य तौर पर सवेरे पीया गया पानी अमृत समान, दिन में पीया गया पानी प्यास की पूर्ति हेतु और रात में पीया गया पानी निरर्थक है।
  22. आयुर्वेदीय ग्रन्थ श्योग रत्नाकरश् के अनुसार जो मनुष्य सूर्य उदय होने के निकट समय में आठ प्रसर (प्रसृत) मात्रा में जल पीता हैं, वह रोग और बुढ़ापे से मुक्त होकर 100 वर्ष से भी अधिक जीवित रहता हैं।
  23. हिन्दू धर्म में बिंदु सरोवर, नारायण सरोवर, पम्पा सरोवर, पुष्घ्कर झील और मानसरोवर के जल को पवित्र माना जाता है। कहते हैं कि इस जल से स्नान करने और इसको ग्रहण करने से सभी तरह के पाप मिट जाते हैं और व्यक्ति का मन निर्मिल हो जाता है।
  24. गर्मी के मौसम में मिट्टी या चांदी के घड़े, मटके या सुराही में, बरसात के मौसम में तांबें के गड़े में, सर्दी के मौसम में सोने या पीतल के घड़े या बर्तन में पानी पीना चाहिए।
  25. घाट घाट का पानी नहीं पीना चहिए। पीना हो तो पानी को प्राकृतिक तरीके से छानकर ही पीना चाहिए। खड़े रहकर या चलते फिरते पानी पीने से ब्लॉडर और किडनी पर जोर पड़ता है। पानी ग्लास में घुंट-घुंट ही पीना चाहिए। अंजुली में भरकर पीए गए पानी में मीठास उत्पन्न हो जाती है। जहां पानी रखा गया है वह स्थान ईशान कोण का हो तथा साफ-सुधरा होना चाहिए। पानी की शुद्धता जरूरी है।

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