चेली।
एक दिन उड़ जायेगी,
मेरे घरौंदे से
अपना घरौंदा बनाने।
उसकी यादों को,
मैं सहेजना चाहता हूं।
चेली।
एक दिन ओझल हो जायेगी,
मेरेे घर से।
मैं उसकी बचपन की किलकारियों को,
सहेजना चाहता हूं।
चेली।
एक दिन रूखसत हेा जायेगी,
मेरी दहलीज से।
मैं उसका सामीप्य चाहता हूं।
चेली।
धीरज भट्ट
हल्द्वानी
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