समाचार सच, दिल्ली। पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली नहीं रहे। शनिवार को दिल्ली स्थित एम्स में उनका निधन हो गया। उन विपक्षी नेताओं में शुमार रहे जिन्हें सौम्य, मृदुभाषी और सर्वसुलभ कहा जाता रहा है। एबीवीपी से जुड़े रहे जेटली का परिवार देश विभाजन के लिए देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को जिमम्मेदार मानता रहा है। उनका परिवार देश बंटवारे के बाद पाकिस्तान से भागकर भारत आया था। जेटली अक्सर कहा करते थे कि उनका परिवार पार्टिशन फैमिली है। जेटली कहते थे कि उनके पिता ने बंटवारे का बहुत बड़ा दंश झेला है।
एक इंटरव्यू में जेटली ने बताया था कि उनका परिवार पाकिस्तान के लाहौर में रहता था। 1920 में दादा जी का निधन हो चुका था। जब देश का बंटवारा हुआ तब उनकी दादी छह बेटों और दो बेटियों के साथ कुछ कपड़े और गहने लेकर दिल्ली आ गई थीं। जब ये लोग 1947 में दिल्ली आए थे तब जेटली के पिता की अभी शादी ही हुई थी।
बतौर जेटली जब उनका परिवार दिल्ली आया था तब उन्हें किराए पर कोई घर नहीं देता था। बाद में पुरानी दिल्ली की तंग गलियों में एक मुस्लिम परिवार जो पाकिस्तान चला गया था, उसका घर किराए पर मिला।
जेटली के पिता महाराज किशन जेटली वकील थे। जेटली ने बताया था कि उनके पिता को वकालत करने में भी काफी परेशानी आई थी। उन्हें रिफ्यूजी कहा जाता था। आखिरकार 13 साल के बाद उनके पिता ने दिल्ली के नारायणा विहार में जमीन का एक टुकड़ा खरीदा और उस पर आशियाना बसाया था।
जेटली की दादी बच्चों की पढ़ाई को लेकर काफी सजग थीं। इसी वजह से जेटली और उनकी बड़ी बहन का दाखिला इंगलिश मीडियम कॉन्वेन्ट स्कूल में हुआ था। बाद में जेटली ने सेंट जेवियर्स स्कूल और फिर श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में पढ़ाई की। (साभार: जनसत्ता)
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