चार्तुमास: साधना, संयम और सेवा का विशेष काल, जानें क्या करें और क्या न करें

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समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। हिंदू धर्म में चार्तुमास का विशेष महत्व होता है। यह एक ऐसा आध्यात्मिक काल है जो हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल एकादशी (देवशयनी एकादशी) से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी (प्रबोधिनी एकादशी) तक चलता है। इस वर्ष चार्तुमास की शुरुआत 17 जुलाई 2025 से हो रही है और यह 9 नवंबर 2025 तक रहेगा।

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चार्तुमास का अर्थ होता है ‘चार महीने’ यह काल भगवान विष्णु की योगनिद्रा का समय माना जाता है। इस दौरान धार्मिक कार्यों, व्रत-उपवास, जप-तप और संयम का विशेष महत्व होता है। साधु-संत इस समय स्थायी रूप से एक ही स्थान पर रहकर प्रवचन और साधना करते हैं।

चार्तुमास में वर्जित कार्य
चार्तुमास में कुछ कार्य वर्जित माने गए हैं, जिनका पालन करना धार्मिक दृष्टि से आवश्यक होता है। इनमें प्रमुख हैं

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विवाह और शुभ मुहूर्त के कार्य नहीं किए जाते

  • घर में रंग-रोगन, नया निर्माण कार्य वर्जित रहता है
  • नशा, मांसाहार, प्याज-लहसुन, अंडा आदि का सेवन निषिद्ध होता है
  • बाल कटवाना, नाखून काटना, शेविंग करना वर्जित माना जाता है (विशेषकर साधु-संन्यासियों के लिए)
  • रात्रि में भोजन और अधिक निद्रा से बचने की सलाह दी जाती है

चार्तुमास में किये जाने वाले कार्य

  • व्रत-उपवास रखना (हर एकादशी, पूर्णिमा आदि पर)
  • भगवद् गीता, रामायण, भागवत आदि ग्रंथों का पाठ करना
  • मंदिर दर्शन, सत्संग, कथा-कीर्तन में भाग लेना
  • दान-पुण्य, गौसेवा, अन्नदान आदि करना
  • संयमित जीवन जीना, क्रोध और लोभ से दूरी बनाना
  • ब्रह्मचर्य का पालन करना
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क्यों होता है यह काल विशेष?
चार्तुमास वर्षा ऋतु के समय पड़ता है, जब प्रकृति में भी परिवर्तन होता है। इस समय शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। धार्मिक अनुशासन और संयम से जीवनशैली को संतुलित बनाए रखने में मदद मिलती है।

निष्कर्ष
चार्तुमास न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक अभ्यास का समय भी है। यह काल आत्मशुद्धि, संयम और भक्ति का प्रतीक है। यदि श्रद्धा और नियमपूर्वक इसका पालन किया जाए तो यह जीवन में आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।

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