शारदीय नवरात्रि 2023: नवरात्रि के पांचवे दिन स्कंदमाता की पूजा करने से मिलता है संतान सुख

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समाचार सच. स्वास्थ्य डेस्क। नवरात्रि के पांचवे दिन देवी के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा की जाती है। जो कि इस बार 29 मार्च, रविवार को होगी। स्कंदमाता हिमायल की पुत्री पार्वती ही हैं। इन्हें गौरी भी कहा जाता है। भगवान स्कंद को कुमार कार्तिकेय के नाम से जाना जाता है और ये देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति थे। इनकी मां देवी दुर्गा थीं और इसी वजह से मां दुर्गा के स्वरूप को स्कंदमाता भी कहा जाता है। मान्यता है कि जिस भी साधक पर स्कंदमाता की कृपा होती है उसके मन और मस्तिष्क में अपूर्व ज्ञान की उत्पत्ति होती है।

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स्कंदमाता की पूजन विधि

  • देवी स्कंदमाता की पूजा के लिए पूजा स्थल, जहां पर कलश स्थापना की हुई है, वहां पर स्कंदमाता की मूर्ति या तस्वीर की स्थापना करें और उन्हें फल चढ़ाएं, फूल चढ़ाए, धूप-दीप जलाएं।
  • माना जाता है कि पंचोपचार विधि से देवी स्कंदमाता की पूजा करना बहुत शुभ होता है।
  • बाकी पूजा प्रक्रिया वैसी ही जैसी ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा और बाकी देवियों की है।
    स्कंदमाता पूजा मंत्र
    या देवी सर्वभूतेषु स्कंदमाता रूपेण संस्थिता.
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
  • माना जाता है कि स्कंदमाता की पूजा करने से बाल रूप स्कंद कुमार की पूजा पूरी मानी जाती है।
  • देवी स्कंदमाता की पूजा करते वक्त नारंगी रंग के वस्त्र धारण करें और नारंगी रंग के कपड़ों और श्रृंगार सामग्री से ही देवी को सजाएं। इस रंग को ताजगी का प्रतीक भी माना जाता है।
  • देवी अपने इस रूप में यानि स्कंदमाता के रूप में अपने भक्तों की सभी इच्छाओं की पूर्ति करती है इसलिए भक्त जो चाहें उनसे मांग सकते हैं।

स्कंदमाता के लिए नैवेद्य
स्कंदमाता को केले प्रिय हैं इसलिए उन्हें केले का भोग लगाएं और बाद में इस भोग को ब्राह्मण को दे दें। ऐसा करने से साधक का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। इसके साथ ही खीर और सूखे मेवे का भी नैवेद्य लगाया जा सकता है।

देवी के इस रूप का महत्व

  • स्कंदमाता शेर की सवारी करती हैं जो क्रोध का प्रतीक है और उनकी गोद में पुत्र रूप में भगवान कार्तिकेय हैं, पुत्र मोह का प्रतीक है।
  • देवी का ये रूप हमें सीखाता है कि जब हम ईश्वर को पाने के लिए भक्ति के मार्ग पर चलते हैं तो क्रोध पर हमारा पूरा नियंत्रण होना चाहिए, जिस प्रकार देवी शेर को अपने काबू में रखती है।
  • पुत्र मोह का प्रतीक है, देवी सीखाती हैं कि सांसारिक मोह-माया में रहते हुए भी भक्ति के मार्ग पर चला जा सकता है, इसके लिए मन में दृढ़ विश्वास होना जरूरी है।
  • देवी स्कंदमाता की पूजा करने से संतान सुख मिलता है। बुद्धि और चेतना बढ़ती है। कहा गया है कि देवी स्कंदमाता की कृपा से ही कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत जैसी रचनाएं हुई हैं।
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