समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। हमारे सनातन धर्म में व्रत-त्योहारों का महत्वपूर्ण स्थान है। शास्त्रानुसार व्रत एवं त्योहारों को उनकी यथोचित तिथि पर रखना व मनाया जाना चाहिए, किंतु तिथियों का निर्धारण करना एक अत्यंत विद्वत्तापूर्ण कार्य है इसीलिए अधिकांश श्रद्धालुगण तिथियों के निर्धारण के लिए पंचांग का सहारा लेते हैं।
पंचांग में प्रामाणिक रूप से सभी व्रत व त्योहारों की तिथियों का निर्धारण कर यथोचित तिथि एवं दिनांक का उल्लेख दिया रहता है किंतु वर्तमान समय में अक्सर विभिन्न पंचांगों में तिथियों के निर्धारण में मतांतर देखने में आता है, इस मतांतर के कारण सामान्य जन-मानस व श्रद्धालुगण भ्रमित हो जाते हैं।
अधिकांश श्रद्धालुओं को तिथि निर्धारण के सामान्य नियमों की जानकारी ना होने से वे पंचांग में दी गई सही व प्रामाणिक तिथि का निर्णय नहीं कर पाते और उनका मन संशय से भरा रहता है। इस वर्ष ‘हरितालिका तीज’ और ‘गणेश चतुर्थी’ (स्थापना) को लेकर जन-मानस में भ्रम व संशय की स्थिति बनी हुई है।
इस वर्ष श्हरितालिका तीजश् व्रत कुछ पंचांगों में 5 सितंबर को दिया है, वहीं कुछ पंचांगों में 6 सितंबर को दिया गया है, ठीक इसी प्रकार ‘गणेश चतुर्थीश्’ भी कुछ पंचांगों में 6 सितंबर को दी हुई है व कुछ पंचांगों में 7 सितंबर को दी गई है। अब श्रद्धालुओं को इनकी सही तिथि को लेकर संशय बना हुआ है।
हरितालिका तीज व्रत निर्णय-
भविष्योत्तर पुराण के अनुसार हरितालिका तीज व्रत भाद्रपद शुक्ल तृतीया को रखा जाता है। शास्त्रानुसार इसमें श्परातिथिश् को ही ग्राह्य का करने का स्पष्ट निर्देश है। यहां द्वितीया और तृतीया के योग का निषेध है, इसके विपरीत तृतीया और चतुर्थी के योग को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।
दिनांक 5 सितंबर 2024 को द्वितीया तिथि अपराह्न 12.21 मिनट तक है, तत्पश्चात् तृतीया का आरंभ होने से इस दिन निषेधात्मक द्वितीया और तृतीया का योग बन रहा है, जो कि वर्जित है।
दिनांक 6 सितंबर 2024 को तृतीया तिथि मध्याह्न 3.01 मिनट तक है, इसके पश्चात् चतुर्थी के आरंभ होने से इस दिन तृतीया और चतुर्थी का योग बन रहा है, जो शास्त्रानुसार सर्वश्रेष्ठ है। 6 सितंबर को शास्त्राज्ञा के दो महत्वपूर्ण नियम पूर्ण हो रहे हैं- पहला परातिथि की ग्राह्यता एवं दूसरा तृतीया और चतुर्थी का योग।
कुछ विद्वान चन्द्रोदयव्यापिनी तिथि के नियमानुसार 5 सितंबर को इस व्रत का निर्धारण कर रहे हैं, किंतु शास्त्रानुसार यहां स्पष्ट रूप से परातिथि की ग्राह्यता और तृतीया एवं चतुर्थी के योग को सर्वश्रेष्ठ बताने के कारण चन्द्रोदयव्यापिनी तिथि के नियम की उपेक्षा कर ‘हरितालिका तीज’ व्रत दिनांक 6 सितंबर को रखना शास्त्रसम्मत व श्रेयस्कर रहेगा।
श्री गणेश चतुर्थी व्रत निर्णय-
प्रतिवर्ष श्री गणेश चतुर्थी का व्रत भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को रखा जाता है। इसी दिन विघ्नहर्ता मंगलमूर्ति भगवान श्री गणेश जी की स्थापना भी की जाती है। गणेशोत्सव हमारे देश व हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस वर्ष गणेश चतुर्थी को लेकर भी संशय बना हुआ है। कुछ पंचांग में गणेश चतुर्थी 6 सितंबर को दी हुई है, वहीं कुछ पंचांग में 7 सितंबर को दी गई है।
शास्त्रानुसार गणेश चतुर्थी में सदैव पूर्वविद्धा तिथि और मध्याह्नव्यापिनी तिथि ग्राह्य की जाती है। हम पहले भी अनेक बार स्पष्ट कर चुके हैं कि सभी व्रत एवं त्योहारों में सूर्याेदयव्यापिनी तिथि को ग्राह्य नहीं किया जाता है, व्रतानुसार इसमें विभेद होता है। कुछ व्रतों में चन्द्रोदयव्यापिनी एवं कुछ व्रतों में मध्याह्नव्यापिनी तिथि की मान्यता व ग्राह्यता होती है।
6 सितंबर को मध्यान्ह में तृतीया तिथि ही रहेगी, जबकि 7 सितंबर 2024 को प्रातःकाल और मध्याह्न दोनों ही समय चतुर्थी तिथि के रहने से यहां पूर्वविद्धा के नियम की उपेक्षा कर मध्याह्नव्यापिनी और सूर्याेदयव्यापिनी तिथि को ग्राह्य किया जाना श्रेयस्कर व श्रेष्ठ रहेगा। अतः हमारे मतानुसार इस वर्ष श्हरितालिका तीज व्रत 6 सितंबर एवं गणेश चतुर्थी व्रत (स्थापना) 7 सितंबर 2024 को रहेगा। (साभार -ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया)
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