क्या लोकसभा चुनाव के बाद होंगे निकाय चुनाव

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समाचार सच, देहरादून। उत्तराखंड राज्य में नगर निकाय चुनाव को लेकर बड़ी खबर आयी है। यहां नगर निकाय चुनाव लोकसभा चुनाव के बाद होगें। इन दिनों राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा का विषय बना हुआ है। कारण तो अनेक हो सकते है लेकिन सबसे बड़ी बात यह सामने आ रही है कि सत्तारूढ़ पार्टी को यह डर सता रहा है कि यदि लोकसभा चुनाव से पहले नगर निकाय चुनाव करा दिये गये तो पार्टी की गुटबाजी कहीं लोकसभा चुनाव पर भारी न पड़ जायें।

लोकसभा चुनाव की तिथि तो नहीं टल सकती लेकिन नगर निकाय के चुनाव कुछ माह के लिये जरूर आगे टल सकते है इसके लिये केवल नगर निकाय का कार्यकाल पूरा होते ही प्रशासक नियुक्त करना होगा। नगर निगम, नगर पालिका में प्रशासक नियुक्त करने की व्यवस्था है। राजधानी देहरादून के निवासी इस बात से बखूबी परिचित है क्योंकि जब नगर पालिका से नगर निगम का गठन हुआ था उस समय विनोद चमोली नगर पालिका के अध्यक्ष थें और उनके कार्यकाल में ही नगर पालिका का उच्चीकरण होकर नगर निगम बना था। जब नगर निगम बना तब उस समय बोर्ड का कार्यकाल बचा था लेकिन नियम के अनुसार बोर्ड को भंग कर दिया गया और प्रशासक की नियुक्ति हुई इसके बाद नगर निगम के चुनाव हुए थें।

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बहरहाल इन दिनों उत्तराखंड राज्य में सबसे बड़ी राजनीतिक चर्चा यही हो रही है कि सत्तारूढ़ पार्टी हो न हो नगर निकाय चुनाव को कुछ समय के लिये आगे खिसकाने का विचार कर रही है। लोकसभा चुनाव के बाद नगर निकाय चुनाव कराये जा सकते है। अप्रैल माह समाप्ति की ओर है नवम्बर माह में वैसे नगर निकाय चुनाव होने है लेकिन भाजपा सहित किसी भी पार्टी में चुनाव की तैयारी शुरू होते हुए दिखाई नहीं दे रही इसका मतलब साफ है कि अंदरूनी खाने सबको यह पता चल चुका है कि हो न हो नगर निकाय चुनाव लोकसभा के बाद ही कराने की रणनीति चल रही है। वैसे भी नगर निगम चाहे हरिद्वार का हो या फिर देहरादून का दोनो ही मेयर कुर्सी पर दावेदारों की संख्या काफी लम्बी चौड़ी है।

आज से पांच साल पहले जब नगर निगम के चुनावी बिगुल बजने वाले थे उस समय भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने मेयर का टिकट क्या मांगा था कि उनके ग्रह नक्षत्र एकदम विपरीत दिशा में चल पड़े थे। इनकम टैक्स की ऐसी छापेमारी हुई कि नेताजी मेयर का टिकट छोड़ो अपने घर तक का रास्ता भूल गये थें बड़ी मुश्किल से आयकर से उन्होने अपनी जान छुड़ाई। मेयर का टिकट दोबारा उनकी जुबान तक पर नहीं आया था। कहने का मतलब यह है कि सत्तारूढ़ पार्टी में नगर निकाय के चुनावों में दावेदारों की संख्या बहुत अधिक है वहीं गुटबाजी भी चरम सीमा पर है। ऐसे में सत्तारूढ़ पार्टी के लिये यहीं बेहतर होगा कि लोकसभा चुनाव के बाद ही निकाय चुनाव पर विचार किया जायें। नहीं तो कहीं ऐसा न हो कि निकाय के चुनाव में लोकसभा हाथ से न निकल जायें ।विपरीत दिशा में चल पड़े थे। इनकम टैक्स की ऐसी छापेमारी हुई कि नेताजी मेयर का टिकट छोड़ो अपने घर तक का रास्ता भूल गये थें बड़ी मुश्किल से आयकर से उन्होने अपनी जान छुड़ाई। मेयर का टिकट दोबारा उनकी जुबान तक पर नहीं आया था। कहने का मतलब यह है कि सत्तारूढ़ पार्टी में नगर निकाय के चुनावों में दावेदारों की संख्या बहुत अधिक है वहीं गुटबाजी भी चरम सीमा पर है। ऐसे में सत्तारूढ़ पार्टी के लिये यहीं बेहतर होगा कि लोकसभा चुनाव के बाद ही निकाय चुनाव पर विचार किया जायें। नहीं तो कहीं ऐसा न हो कि निकाय के चुनाव में लोकसभा हाथ से न निकल जायें ।

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