आज ही के दिन उत्तराखंड की महिलाओं ने पेड़ से लिपटकर की थी जंगल की रक्षा: चिपको आंदोलन

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देहरादून, समाचार सच। आज 26 मार्च कोे उत्तराखंड में एक आंदोलन की शुरुआत हुई थी, जिसे नाम दिया गया था चिपको आंदोलन। इस आंदोलन की शुरूआत चंडीप्रसाद भट्ट और गौरा देवी की ओर से की गई थी और भारत के प्रसिद्ध सुंदरलाल बहुगुणा ने आगे इसका नेतृत्व किया। इस आंदोलन में पेड़ों को काटने से बचने के लिए गांव के लोग पेड़ से चिपक जाते थे। इसी वजह से इस आंदोलन का नाम चिपको आंदोलन पड़ा था।  
आपको बता दे कि 26 मार्च 1974 को ही उत्तराखंड  में 27 महिलाओं ने पेड़ों को बचाने  के लिए उनसे लिपटकर चिपको आंदोलन  देश भर में मशहूर कर दिया था।

भारत के आधुनिक इतिहास में चिपको आंदोलन  1970 के दशक में बहुत प्रभावी आंदोलनों में से एक था। पर्यावरण  की रक्षा के लिए किया गया आंदोलन वास्तव में पेड़ों की कटाई  को रोकने के लिए उत्तराखंड के चमोली जिले के जंगलों में एक अहिंसक लेकिन अनोखा आंदोलन था। इस आंदोलन को देश भर में मशहूर करने वाली घटना 26 मार्च 1974 को गढ़वाल हिमालय के लाता गांव में गौरा देवी के नेतृत्व में 27 महिलाओं के समूह के द्वारा पेड़ों की कटाई बचाने के प्रयास के रूप में हुई थी।

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आंदोलन का कारण
इस आंदोलन के पीछे का कारण व्यवसाय के लिए हो रही वनों की कटाई को रोकना था और जब स्थानीय महिलाओं के समूह ने इसके लिए पेड़ों पर चिपक कर अपना विरोध प्रदर्शन किया तो देशभर में हलचल मच गई। इस आंदोलन के जरिए स्थानीय लोग वन विभाग के ठेकेदारों द्वारा कटाई का विरोध कर पेड़ों पर अपना परंपरागत अधिकार जता रहे थे।

इस आंदोलन की खासबात यह थी कि इसमें भारी संख्या में महिलाओं ने भाग लिया था। इस आंदोलन की नींव 1970 में मशहूर पर्यावरणविद सुंदरालाल बहुगुणा, कामरेड गोविंद सिंह रावत, चंडीप्रसाद भट्ट और श्रीमती गौरदेवी के नेतृत्व में हुई थी।

1974 की अहम घटना
इस आंदोलन में अहम घटना 26 मार्च 1974 को हुई जब रेणी में 2400 पेड़ों से भी ज्यादा की कटाई होने थी। जब इस कटाई की नीलामी हुई तो गौरा देवी के नेतृत्व में 27 महिलाओं ने पेड़ काटने आए लोगों  को समझाने की कोशिश की लेकिन उनके ना मानने पर महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर उन्हें चुनौती दी कि पेड़ काटने से पहले उन्हें काटना होगा।
इस घटना का सीधा असर उस समय की उत्तर प्रदेश सरकार पर हुआ। उस समय तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा ने इस मामले पर विचार करने के लिए एक कमेटी का गठन कर दिया जिसे उत्तरांचल के लोगों के हक में फैसला दिया जो आंदोलन की विजय के रूप में देखा गया। इस तरह यह घटना एक बहुत बड़े बदलाव की नींव बनी।

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चिपको आंदोलन का नतीजा
इस आंदोलन का नतीजा यह रहा है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इदिरा गांधी ने हिमालयी वनों में पेड़ों की कटाई पर 15 साल के लिए रोक लगा दी।  बाद में यही आंदोलन हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, बिहार, तक फैला और सफल भी रहा। यह आंदोलन पर्यावरण के प्रति जागरुकता का प्रतीक भी बना।

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