समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। 16 श्राद्ध पक्ष का अंतिम दिन सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध 2 अक्टूबर 2024 बुधवार के दिन रखा जाएगा। इस दिन सूर्य ग्रहण भी रहेगा और गांधी जयंती भी। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग में तर्पण और पिंडदान किया जाएगा। पितरों का श्राद्ध करने का समय मध्यान्ह काल रहता है। इस दिन विशेष अचूक उपाय करने से पितृदोष दूर किया जा सकता है और श्राद्ध कर्म करके पितरों की मुक्ति के उपाय भी किए जा सकते हैं।
सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध करने का समय जानें
सर्वपितृ अमावस्या तिथि प्रारंभ एवं अंत का समय क्या है?
सर्वपितृ अमावस्या तिथि प्रारम्भ- 01 अक्टूबर 2024 को रात्रि 09.39 बजे से प्रारंभ।
सर्वपितृ अमावस्या तिथि समाप्त- 03 अक्टूबर 2024 को (रात्रि) 12.18 बजे समाप्त।
श्राद्ध करने का कुल समय- दिन में 11.30 बजे से 03.30 बजे तक। इस दौरान निम्नलिखित मुहूर्त में भी श्राद्ध कर सकते हैं।
कुतुप मूहूर्त- 2 अक्टूबर 2024 को दोपहर 11.46 से 12.34 के बीच।
रोहिणी मूहूर्त- 2 अक्टूबर 2024 को दोपहर 12.34 से 01.21 के बीच।
अपराह्न काल- 2 अक्टूबर 2024 को अपराह्न 01.21 से 03.43 के बीच।
सर्वार्थ सिद्धि योगरू 2 अक्टूबर बुधार को दोपहर 12.23 से अगले 3 अक्टूबर गुरुवार को सुबह 06.15 तक।
सर्वपितृ अमावस्या 2024 के दिन 5 आसान उपायों से पितरों को करें प्रसन्न-
सर्वपितृ अमावस्या पर करें पंचबलि कर्म-
सर्व पितृ श्राद्ध में पंचबलि अर्थात इस दिन गाय, कुत्ते, कौए, देव और अंत में चींटियों के लिए भोजन सामग्री पत्ते पर निकालने के बाद ही भोजन के लिए थाली अथवा पत्ते पर ब्राह्मण या बटुकों हेतु भोजन परोसना चाहिए। साथ ही जमई, भांजे, मामा, नाती और कुल खानदान के सभी लोगों को अच्छे से पेटभर भोजन खिलाकर दक्षिणा देने से सभी तृप्त होकर आशीर्वाद देते हैं।
सर्वपितृ अमावस्या पर करें तर्पण और पिंडदान-
सर्वपितृ अवमावस्या पर तर्पण और पिंडदान का खासा महत्व है। उबले चावल में गाय का दूध, घी, गुड़ और शहद को मिलाकर पिंड बनाते हैं और उन्हें पितरों को अर्पित करके जल में विसर्जित कर देते हैं। पिंडदान के साथ ही जल में काले तिल, जौ, कुशा, सफेद फूल मिलाकर तर्पण करते हैं। पिंड बनाने के बाद हाथ में कुशा, जौ, काला तिल, अक्षत् व जल लेकर संकल्प करें। इसके बाद इस मंत्र को पढ़े. “ऊँ अद्य श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त सर्व सांसारिक सुख-समृद्धि प्राप्ति च वंश-वृद्धि हेतव देवऋषिमनुष्यपितृतर्पणम च अहं करिष्ये।’’
सर्पपितृ अमावस्या पर करें दान कर्म-
इस दिन गरीबों को यथाशक्ति दान देना चाहिए। जैसे छाता, जुते-चप्पल, पलंग, कंबल, सिरहाना, दर्पण, कंघा, टोपी, औषधि, धान्य, तिल, वस्त्र, स्वर्ण, घृत, लवण, गुड़, रजन, अन्न, दीप, धन दान आदि। इनमें से जो भी यथाशक्ति दान दे सकते हैं वे दें।
सर्पपितृ अमावस्या पर गुड़ घी की धूप-
16 दिनों तक लगातार सुबह और शाम घर में मध्यान्ह काल के समय एक कंडा यानी उपला जलाएं और उस पर गुड़ में घी मिलाकर उसकी धूप दें। उस कंडे पर घर पर बना भोजन की थोड़ा अग्नि को अर्पित करें। सभी के नाम की धूप दें। 16 दिन नहीं दे पाएं हैं तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन धूप दें।
सर्पपितृ अमावस्या पर करें वृक्ष का पूजन-
इस दिन पीपल या बरगद के वृक्ष में जल अर्पित करके नीचे दीया लगाना चाहिए। पीपल की परिक्रमा भी करें। वहां पर चींटियों के लिए आटे में शक्कर मिलाकर अर्पित करें।
सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध करने की विधि, कैसे करें पितरों का श्राद्ध-
श्राद्ध की सामग्री
तांबे का लोटा, चम्मच, तरभाणा (ताबें की छोटी प्लेट), काले तिल, जौ, कच्चा दूध, सफेद फूल, चावल, तुलसी, कुश का आसन, कुश, धोती, घी, गुड़, शहद, यज्ञोपवित, चंदन, गुलाब के फूल, फूल-माला, सुपारी आदि सामग्री एकत्रित करें। महिलाएं शुद्ध होकर पितरों और सभी के लिए भोजन बनाकर रखें।
- पहले धोती पहनकर, यज्ञोपवित धारण करके कुश आसन पर पूर्वमुखी होकर बैठें। देव, ऋषि और पितरों के लिए घी का दीप जलाएं, चंदन की धूप जलाएं। फूल माला चढ़ाएं। सुपारी रखें।
- इसके बाद और एक भगोने में पवित्र जल में तिल, कच्चा दूध, जौ, तुलसी मिलाकर रख लें। पास में ही तरभाणा रखें जिसमें लोटे से लेकर जल छोड़ा जाएगा।
- आसन पर बैठकर तीन बार आचमन करें। ऊँ केशवाय नमः, घ् माधवाय नमः, ऊँ गोविन्दाय नमः बोलें।
- आचमन के बाद हाथ धोकर अपने ऊपर जल छिड़के अर्थात् पवित्र होवें, फिर गायत्री मंत्र से शिखा बांधकर तिलक लगाकर कुशे की पवित्री (अंगूठी बनाकर) अनामिका अंगुली में पहनकर हाथ में जल, सुपारी, सिक्का, फूल लेकर निम्न संकल्प लें।
- अपना नाम एवं गोत्र उच्चारण करें फिर बोले अथ् श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थ देवर्षिमनुष्यपितृतर्पणम करिष्ये।।
- इसके बाद जल, कच्चा दूध, गुलाब की पंखुड़ी डाले, फिर हाथ में चावल लेकर देवता एवं ऋषियों का आह्वान करें। स्वयं पूर्व मुख करके बैठें, जनेऊ को रखें। कुशा के अग्रभाग को पूर्व की ओर रखें, देवतीर्थ से अर्थात् दाएं हाथ की अंगुलियों के अग्रभाग से तर्पण दें। अर्थात लोटे के घ्जल को लेकर उसे तरभाणे में अंगुलियों से अर्पित कर दें।
- इसी प्रकार उत्तर में मुख करके ऋषियों को तर्पण दें। अब उत्तर मुख करके जनेऊ को कंठी करके (माला जैसी) पहने एवं पालकी लगाकर बैठे एवं दोनों हथेलियों के बीच से जल गिराकर दिव्य मनुष्य को तर्पण दें।
- ध्यान रखें कि अंगुलियों से देवता और अंगूठे से पितरों को जल अर्पण किया जाता है।
- इसके बाद दक्षिण मुख बैठकर, जनेऊ को दाहिने कंधे पर रखकर बाएं हाथ के नीचे ले जाए, थाली में काली तिल छोड़े फिर काली तिल हाथ में लेकर अपने पितरों का आह्वान करें- घ् आगच्छन्तु में पितर इमम ग्रहन्तु जलान्जलिम। फिर पितृ तीर्थ से अर्थात् अंगूठे और तर्जनी के मध्य भाग से तर्पण दें।
- तर्पण करते वक्त अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मत्पितामह (पिता का नाम) वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। इस मंत्र से पितामह और परदादा को भी 3 बार जल दें। इसी प्रकार तीन पीढ़ियों का नाम लेकर जल दें। इस मंत्र को पढ़कर जलांजलि पूर्व दिशा में 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार और दक्षिण दिशा में 14 बार दें। जिनके नाम याद नहीं हो, तो रूद्र, विष्णु एवं ब्रह्मा जी का नाम उच्चारण कर लें। भगवान सूर्य को जल चढ़ाए।
- इसके बाद हाथ में जल लेकर घ् विष्णवे नमरू घ् विष्णवे नमरू घ् विष्णवे नमरू बोलकर यह कर्म भगवान विष्णु जी के चरणों में छोड़ दें। इस कर्म से आपके पितृ बहुत प्रसन्न होंगे एवं मनोरथ पूर्ण करेंगे।
कैसे करें पिंडदान
- चावल को गलाकर और गलने के बाद उसमें गाय का दूध, घी, गुड़ और शहद को मिलाकर गोल-गोल तीन पिंड बनाए जाते हैं।
- पहले तीन पिंड बनाते हैं। पिता, दादा और परदादा। यदि पिता जीवित है तो दादा, परदादा और परदादा के पिता के नाम के पिंड बनते हैं।
- जनेऊ को दाएं कंधे पर पहनकर और दक्षिण की ओर मुख करके उन पिंडो को पितरों को अर्पित करने को ही पिंडदान कहते हैं।
- पहले पिंड को तैयार कर लें और फिर चावल, कच्चा सूत्र, मिठाई, फूल, जौ, तिल और दही से उसकी पूजा करें। पूजा करते वक्त अगरबत्ती जलाएं।
- पिंड को हाथ में लेकर इस मंत्र का जाप करते हुए, ‘इदं पिण्ड (पितर का नाम लें) तेभ्यः स्वधा’ के बाद पिंड को अंगूठा और तर्जनी अंगुली के मध्य से छोड़ें।
- पिंडदान करने के बाद पितरों का ध्यान करें और पितरों के देव अर्यमा का भी ध्यान करें। अब पिंडों को उठाकर अलग रख दें और उन्हें कभी भी नदी में प्रवाहित कर दें।
- कंडे पर पितरों के निमित्त कंडे जलाकर उस पर गुड़-घी की धूप दें। उसी में पितरों के लिए बनाया गया भोजन की कुछ भाग अर्पित करें।
- धूप के बाद पांच भोग निकालें जो पंचबली कहलाती है। देव, गाय, कौवे, कुत्ते और पिपल के लिए भोग निकालें।
- पंचबलिक कर्म के बाद यथाशक्ति अनुसार ब्राह्मणों को भोज कराकर दक्षिणा दें।
- इसके साथ ही जमई, भांजे, मामा, नाती और कुल खानदान के सभी लोगों को अच्छे से पेटभर भोजन खिलाकर दक्षिणा जरूर दें।
ये कार्य न करें
इस दिन गृह कलह न करें, चरखा, मांसाहार, बैंगन, प्याज, लहसुन, बासी भोजन, सफेद तील, मूली, लौकी, काला नमक, सत्तू, जीरा, मसूर की दाल, सरसो का साग, चना आदि वर्जित माना गया है। कोई यदि इनका उपयोग करना है तो पितर नाराज हो जाते हैं। शराब पीना, मांस खाना, श्राद्ध के दौरान मांगलिक कार्य करना, झूठ बोलना और ब्याज का धंधा करने से भी पितृ नाराज हो जाता हैं।
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