छठ पूजा 2024: बांस के सूप के बिना छठ पूजा मानी जाती है अधूरी, संतान की तरक्की से जुड़ा है कारण

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समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। छठ लोक आस्था का महापर्व है। छठ पूजा भगवान सूर्य और छठी मैया को समर्पित है। इस पूजा में बांस के सूप का भी विशेष महत्व है और इसे पूजा सामग्री का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। इस पर्व पर सूप का उपयोग पारंपरिक रूप से पूजा की थाल के रूप में किया जाता है, जिसमें सभी प्रसाद और पूजा सामग्री सजाई जाती है। आइए जानते हैं, सूप का महत्व और इसकी परंपरा की शुरुआत कैसे हुई।

सूप का सांस्कृतिक महत्व
छठ पूजा में सूप को पवित्रता और समर्पण का प्रतीक माना गया है। इसमें फलों, ठेकुआ, नारियल, और गन्ने जैसे प्रसाद रखकर सूर्य देव और छठी मईया को अर्पित किया जाता है। सूप बांस या पत्तों से बना होता है, जो प्राकृतिक रूप से पवित्रता का प्रतीक है। यह भी माना जाता है कि प्राकृतिक वस्तुएं सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं, इसलिए सूप का उपयोग किया जाता है।

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धार्मिक मान्यता
छठ पूजा संतान के लिए ही की जाती है। ऐसे में मान्यता है कि जिस तरह से बांस 8 हफ्ते में ही 60 फीट ऊंचा तेजी से बढ़ता है। इसकी घास भी एक दिन में एक मीटर तक तेजी से बढ़ती है। यदि इस बांस से बनी सूप का छठ पूजा के व्रत अनुष्ठान में प्रयोग किया जाए। तो ठीक उसी प्रकार संतान के जीवन में भी तेजी से उन्नति होती है। छठ पूजा सूर्य उपासना का पर्व है, और सूप सूर्य को प्रसन्न करने का माध्यम माना जाता है। इसमें रखे गए प्रसाद और अर्घ्य से भगवान सूर्य को समर्पण का भाव प्रकट किया जाता है। मान्यता है कि सूप में चढ़ाए गए प्रसाद से छठी मईया और सूर्य देव शीघ्र प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं।

परंपरा की शुरुआत
छठ पूजा की परंपरा की शुरुआत महाभारत काल से मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि कुंती ने पांडवों को राजसुख दिलाने के लिए सूर्य उपासना की थी। इसके अलावा, कर्ण, जो कि सूर्य पुत्र थे, ने भी सूर्य की आराधना के लिए इस व्रत का पालन किया था। धीरे-धीरे इस पर्व का चलन समाज में फैल गया, और लोगों ने सूप का उपयोग करना शुरू किया, जो कि बांस या पेड़ों की पत्तियों से बनता था। यह सरलता और समर्पण का प्रतीक बन गया।

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सूप का उपयोग और प्रसाद की पवित्रता
सूप को बेहद स्वच्छ रखा जाता है और उसमें प्रसाद को इस तरह से सजाया जाता है कि यह देखने में भी अत्यंत सुंदर लगे। प्रसाद के रूप में नारियल, केले, ठेकुआ, और अन्य फल आदि रखे जाते हैं, जोकि इस पूजा में विशेष महत्व रखते हैं। सूप में रखकर सूर्य देव और छठी मईया को प्रसाद चढ़ाना इस पर्व की विशेष पूजा विधि का हिस्सा है, और इस परंपरा को लोग पीढ़ी दर पीढ़ी निभाते आ रहे हैं।

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