“ऑपरेशन मेघदूत के शहीदों को श्रद्धांजलि” मेजर रौतेला की कलम से…

खबर शेयर करें

समाचार सच, हल्द्वानी। अप्रैल 1984 में दुनिया के सबसे ऊँचे युद्ध के मैदान का आगाज ऑपरेशन मेघदूत के साथ शुरू हुआ। वीरों की भूमि कुमांऊ रेजिमेंट की कई बटालियनों को इस ऑपरेशन में कूच किया गया। उन विषम हालातों में स्थिति बहुत ही भयावह और खतरनाक थी। इससे पहले इस अतिदुर्गम क्षेत्र में किसी भी देश की सेना की तैनाती नहीं थी। इसमें 19 कुमांऊ को भी खेरु से कूच कराया गया और यह एक ऐतिहासिक घटना है कि 19 कुमांऊ खेरु से पैदल सियाचिन गई और इस नई बटालियन ने एक नया इतिहास भी रच डाला। सियाचिन बेस कैम्प पर पहुंचने के बाद बटालियन को हिमाच्छादित चोटियों पर कब्जा कर पाकिस्तान को रोकना था। इस जोखिम भरे काम के लिए 19 कुमांऊ ने एक के बाद एक ऐसी ही बर्फ से ढकी चोटियों पर कब्जा किया और उसके बाद उस क्षेत्र की सबसे कठिन चोटी पर कब्जा करने के लिए एक विशेष दल भेजा गया जिसमें एक अधिकारी और 17 जवान थे। इस दल का नेतृत्व लेफ्टिनेंट पी एस पुंडीर कर रहे थे। यह चोटी सबसे ऊंची और एक दम खड़ी चट्टान थी और वह भी पूरी तरह बर्फ से ढकी थी। उस चोटी पर जाना बहुत ही जोखिम भरा काम था। 27 अप्रैल 1984 को यह गश्ती दल इस जोखिम भरे काम के लिए रवाना हुआ। लेकिन 28-29 को भारी हिमस्खलन होने के कारण पूरा गश्ती दल उसमें फंस गया और उसी में दफन हो गया। इसमें लेफ्टिनेंट पुडीर के साथ 17 जवान जो शहीद हुए सभी जिला अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ के थे। इस ऑपरेशन मेघदूत में जो 17 जवान शहीद हुए उनमें से तीन जवानों के परिवार आजकल हल्द्वानी में निवासरत हैं।

लान्स नायक चन्द्र शेखर :- मूल रुप से जनपद अल्मोड़ा के रानीखेत तहसील के बिन्ता ग्राम हाथीखुर निवासी स्व श्री देवी दत्त और श्रीमती बिशना देवी के पुत्र थे। 1971 में रा०इ०काo द्वाराहाट से इण्टर की परीक्षा पास करने के बाद 15 दिसम्बर 1971 को कुमांऊ रेजिमेण्ट केन्द्र रानीखेत से भर्ती हुए। शुरु में इन्हें 16 कुमांऊ में भेजा गया। 1979 में जब 19 कुमांऊ गठित हुई तब इन्हें 19 कुमांऊ में भेजा गया। 1975 में इनकी शादी हवालबाग निवासी शान्ति देवी से सम्पन्न हुई। इनकी दो पुत्रियां हुई और 29 मई 1984 को लान्स नायक चन्द्र शेखर शहीद हो गये। वर्तमान में इनकी वीर नारी हल्द्वानी में रहती हैं।

यह भी पढ़ें -   उत्तराखण्ड के इस क्षेत्र के मतदाताओं ने किया चुनाव बहिष्कार, एक बूथ में मात्र 28 वोट पड़े

लान्स नायक दया किशन :- मधनपुर, किशनपुर हल्द्वानी के श्री केशव दत्त और श्रीमती इन्द्रा जोशी के दूसरे नम्बर के पुत्र दया किशन एमoबी०पी०जी० कालेज हल्द्वानी से बी0ए0 करने के बाद 04 दिसम्बर 1978 को कुमांऊ रेजिमण्ट में भर्ती हो गये। ये शुरु से ही सेना में कमीशन अधिकारी के रुप में जाना चाहते थे लेकिन अधिकारी की परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर पाये तो सिपाही में ही भर्ती हो गये। दया किशन पढ़े-लिखे थे और इनका प्रदर्शन भी अति उमदा था। ये पल्टन में हर क्षेत्र में आगे रहते थे। 29 मई 1984 को ऑपरेशन मेघदूत में भारत मां का यह वीर सपूत भी शहीद हो गया। इनके दो पुत्र संजय और भाष्कर हैं। बड़े पुत्र संजय अपने शहीद पिता के पद चिन्हों का अनुसरण करते हुए भारतीय सेना में चले गये। इनकी वीर नारी श्रीमती बिमला देवी जी वर्तमान में आवास विकास में रहती हैं। वे कहती हैं कि पति की शहादत के बाद मैं चाहती थी कि दोनों बेटे सेना में ही जायें लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। एक ही बेटा मातृभूमि की रक्षा करने में तैनात है।

सिपाही हयात सिंह :- ऑपरेशन मेघदूत में शहीद सिपाही हयात सिंह मूल रुप से ग्राम मछ्याण पोस्ट चौड़ा मेहता,चम्पावत श्री जोध सिंह व श्रीमती तारी देवी के 4 पुत्रों और 1 पुत्री में सबसे बड़े पुत्र थे। मैडार से कक्षा 10 पास करते ही 10 मार्च 1978 को वे बनबसा में सेना की भर्ती में शामिल हुए और भर्ती हो गये और दूसरे दिन सुबह रानीखेत भेज दिया गया। इनकी वीर नारी श्रीमती बची देवी ने अपनी दुःख भरी दास्तान सुनाई। उन्होंने बताया कि उनकी शादी कम उम्र में ही हो गई थी। 1981 में इनके पुत्र पैदा हुए। फरवरी 1984 में सिपाही हयात सिंह दो महीने के अवकाश में आये थे लेकिन ऑपरेशन मेघदूत चला तो रिकॉल आ गया और बिना छुट्टी बिताये ही चले गये और वहां जाते ही शहीद हो गये। पति की शहादत के समय श्रीमती बची देवी की उम्र मात्र 21 वर्ष थी। डेढ़ साल का पुत्र और पुत्री गर्भ में थी। श्रीमती बची देवी बताती हैं कि पति की शहादत के बाद 21 वर्ष की उम्र और पढ़ी लिखी नहीं होना एक अभिशाप सा हो गया था। वे बताती हैं कि उस समय चम्पावत में सैनिक कल्याण कार्यालय नहीं था। पिथौरागढ़ से आते थे, पेंशन के लिए सुबह 6 बजे अपने गांव से चले और शाम को 4 बजे चम्पावत पहुंचे। दूसरे दिन जब पेंशन के प्रपत्र बनाने लगे तो बताया गया कि फोटो चाहिए। श्रीमती बची देवी जी बताती हैं कि उनके पास फोटो नहीं थी फिर वहां से लोहाघाट गये तो उन्होंने कहा कि फोटो शाम को मिलेगी और दिन भर अपने डेढ़ वर्ष के बच्चे को सैनिक कल्याण कार्यालय में छोड़ कर गई। पेंशन भी डेढ़ वर्ष के बाद स्वीकृत होकर आई। वे बताती हैं कि अब तो सब ठीक है लेकिन पति की शहादत के बाद लगा कि जीवन ही व्यर्थ हो गया है। किंकर्तव्यविमूढ़ सी हो गई थी। वे कहती हैं कि 1989 में पिथौरागढ़ में शहीदों की वीर नारियों के लिए हॉस्टल आशा किरन खोला गया और तत्कालीन जी0ओ0सी साहब ने घर-घर जाकर इसकी जानकारी दिलाई और वहां आने को प्रोत्साहित किया। जहां पर सभी शहीदों की वीर नारियां ही थी। उससे हमें सहारा मिला, एक दूसरे का साथ मिला, वहां पर हम लोगों के लिए प्रौढ़ शिक्षा की व्यवस्था की गई जहां हमने पढ़ना-लिखना सीखा और अपने दम पर खड़ा होना तथा विषम परिस्थितियों का सामना करने का साहस आया। अब सब ठीक है। सेना से सही पेंशन और सभी देय मिल गये हैं। यद्यपि पति शहीद हो गये लेकिन सेना ने हमारी बहुत देखभाल की।

यह भी पढ़ें -   हल्द्वानी में भीषण अग्निकांड, मजदूरों की कई झोपड़ियां और घरेलू सामान जलकर स्वाहा

समाचार सच परिवार सभी शहीदों की शहादत को सलाम करता है और उनको नमन करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

Apply Online admission 2020-21 visit :-
https://www.edumount.org/

सबसे पहले ख़बरें पाने के लिए -

👉 हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ें

👉 फेसबुक पर जुड़ने हेतु पेज़ लाइक करें

👉 यूट्यूब चैनल सबस्क्राइब करें

हमसे संपर्क करने/विज्ञापन देने हेतु संपर्क करें - +91 70170 85440