जानिए माँ नंदा-सुनंदा महोत्सव मनाने के पीछे क्या है लोक मान्यताएं…

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समाचार सच, हल्द्वानी (अध्यात्म)। उत्तराखण्ड अपने लोक पर्वों-उत्सवों और विशिष्ट सामाजिक प्राकृतिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र होने के चलते विश्वभर में देवभूमि के नाम से विख्यात है। मां नंदा-सुनंदा यहां कण-कण में व्याप्त है। प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में मां नंदा-सुनंदा देवी के प्रति असीम श्रद्धा भाव और आस्था की अनूठी अभिव्यक्ति है। मां नंदा-सुनंदा महोत्सव जो उत्तराखण्ड के विभिन्न भागों में पूरे भक्ति भाव से मनाया जाता है।
मां नंदा-देवी महोत्सव मनाये जाने के पीछे कई लोक मान्यताएं एवं किंवदंतियां जुड़ी हैं एक मान्यता के अनुसार चंद राजा की दो बहने नंदा-सुनंदा देवी मंदिर जा रही थी तभी एक राक्षस भैंसे का रूप धारण कर उनका पीछा करने लगा, दोनों बहनें भयभीत होकर एक कदली वृक्ष के पीछे छिप गयी। इसी दौरान एक बकरी वहां आ जाती है जो देखते ही देखते कदली वृक्ष के पत्तों को अपना आहार बनाकर वहां से चलती बनती हैं। अभी दोनों बहने नंदा-सुनंदा भैंसे से बचने का रास्ता सुझा ही रही होती है कि भैंसा उन्हें खोजते-खोजते कदली वृक्ष के पास पहुंच जाता है।
नंदा-सुनंदा का कदली वृक्ष के पीछे देखते ही भैंसा उन दोनों बहनों पर झपट पड़ता है दोनों बहनें उसके चंगुल से निकल जाती हैं। एक अन्य पौराणिक मान्यता के मुताबिक दक्ष प्रजापति ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ में शिव-उमा को नहीं बुलाया गया और न ही उनका यज्ञ भाग रखा। जिससे रूष्ठ हो उमा यज्ञ स्थल पर पहुंच गयी। दक्ष प्रजापति द्वारा शिव को अपमानजनक शब्द कहे जाने से क्रोधित उमा ने स्वयं को यज्ञ कुण्ड में समर्पित कर दिया। इस घटना का पता चलने पर शिव ने दक्ष प्रजापति को दण्ड दिया और सती उमा का शव लेकर तीनों लोकों में विचरण करने लगे। शिव को अपने कर्तव्य से विमुख होता देख भगवान विष्णु ने चक्र से सती के शव को 51 भागों में बांट दिया। शव के जो भाग जहां गिरे वहां-वहां शक्ति पीठों की स्थापना की गयी। नैनीताल के संबंध में मान्यता है कि सती उमा की बांयी आंख यहां गिरी जिससे झील अस्तित्व में आयी। अन्य कथाओं के अनुसार मां नंदा कत्यूरी राजाओं की कुल देवी थी। मान्यता यह भी है कि चंद वंश के राजा भी इसके उपासक थे और उन्होंने ही अल्मोड़ा में मां नंदा देवी का मूल मंदिर बनवाया था। गढ़वाल में भी नंदा पूजा अर्चना विधिवत परम्परा अनुसार किया जाता है। प्रत्येक 12 वर्ष में राज जात यात्रा के रूप में मां नंदा-सुनंदा की विशेष आराधना की जाती है।
नैनीताल में नंदा देवी महोत्सव अपने सफल आयोजन के 117 वर्ष का समय पूरा कर चुका है। गुजरते वक्त के साथ-साथ इस महोत्सव ने जहां लोकप्रियता के नये आयामों को छुआ है। वही महोत्सव सांस्कृतिक परम्पराओं के निर्वहन व पर्वतीय समाज की धार्मिक आस्थाओं को सहेजने में कामयाब रहा है। एक समय था जब इस महोत्सव में पर्वतीय लोक गीतों व विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिए प्राचीन विरासतों की स्पष्ट झलक दिखायी देती थी। पर बदलते वक्त के साथ-साथ इस महोत्सव के स्वरूप में भी काफी बदलाव आया है। आज अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहने की सोच में भले ही बदलाव आया हो पर आज भी कुछ समर्पित और कर्मठ लोग हैं जो शक्ति स्वरूपा मां नंदा-सुनंदा महोत्सव के जरिए पहाड़ की धरोहरों को संजोने में जुटे हुए हैं। और आज ऐसे ही कर्मवीरों के चलते ही हमारी सांस्कृृतिक विरासत सुरक्षित भी बनी हुई है।
परन्तु इस वर्ष कोरोना काल के दौरान इस बार भारत सरकार की गाइडलाइन के अनुसार नंदा देवी महोत्सव सादगी के रूप में मनाया गया है। साथ ही डोले का आयोजन भी नहीं होगा। -(हरीश भट्ट)

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