चैत्र माह की सप्तमी और अष्टमी को मनाई जाती है शीतलाष्टमी, जानें संपूर्ण पूजा विधि एवं पूजन का शुभ मुहूर्त

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समाचार सच, अध्यात्म डेस्क। धार्मिक मान्यतानुसार होली के 7 दिनों बाद शीतला सप्तमी तथा आठवें दिन शीतला अष्टमी मनाई जाती है। कुछ लोग शीतला सप्तमी तो कुछ अष्टमी मनाते हैं। शीतला सप्तमी 21 मार्च और शीतलाष्टमी का व्रत 22 मार्च 2025 को रखा जाएगा। यह व्रत माता शीतला को समर्पित है, जिन्हें रोगों से मुक्ति दिलाने वाली देवी माना जाता है। इस दिन माता शीतला की पूजा की जाती है और उन्हें बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। यही कारण है कि इसे बसौड़ा भी कहा जाता है। आओ जानते हैं शीतला सप्तमी और शीतला अष्यमी की संपूर्ण पूजा विधि और पूजन का शुभ मुहूर्त।।

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शीतला सप्तमी की पूजा का शुभ मुहूर्त
प्रातरू काल पूजा सुबह 04.49 से 06.24 बजे तक।
अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12.04 से 12.53 बजे तक।
संध्या पूजा मुहूर्त शाम को 06.32 से रात्रि 07.44 तक।

शीतला अष्टमी की पूजा का शुभ मुहूर्त
प्रातः काल पूजा- सुबह 04.48 से 06.23 बजे तक।
अभिजीत मुहूर्त- दोपहर 12.04 से 12.52 बजे तक।
संध्या पूजा मुहूर्त- शाम को 06.32 से रात्रि 07.44 तक।

व्रत कैसे करें –
-व्रती को इस दिन प्रातःकालीन कर्मों से निवृत्त होकर स्वच्छ व शीतल जल से स्नान करना चाहिए।
-स्नान के पश्चात निम्न मंत्र से संकल्प लेना चाहिए-
-मम गेहे शीतलारोगजनितोपद्रव प्रशमन पूर्वकायुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धिये शीतलाष्टमी व्रतं करिष्ये
-संकल्प के पश्चात विधि-विधान तथा सुगंधयुक्त गंध व पुष्प आदि से माता शीतला का पूजन करें।
-इसके पश्चात एक दिन पहले बनाए हुए (बासी) खाद्य पदार्थों, मेवे, मिठाई, पूआ, पूरी, दाल-भात आदि का भोग लगाएँ।
-यदि आप चतुर्मासी व्रत कर रहे हों तो भोग में माह के अनुसार भोग लगाएँ।
-जैसे- चैत्र में शीतल पदार्थ, वैशाख में घी और शर्करा से युक्त सत्तू, ज्येष्ठ में एक दिन पूर्व बनाए गए पूए तथा आषाढ़ में घी और शक्कर मिली हुई खीर।
-तत्पश्चात शीतला स्तोत्र का पाठ करें और यदि यह उपलब्ध न हो तो शीतला अष्टमी की कथा सुनें।
-रात्रि में जगराता करें और दीपमालाएँ प्रज्वलित करें।
-विशेष रू इस दिन व्रती को चाहिए कि वह स्वयं तथा परिवार का कोई भी सदस्य किसी भी प्रकार के गरम पदार्थ का भक्षण या उपयोग न करें।

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पूजा विधि

  • शीतला सप्तमी या अष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर माता शीतला का ध्यान करें।
  • व्रतधारी प्रातः कर्मों से निवृत्त होकर स्वच्छ व शीतल जल से स्नान करें।
  • तत्पश्चात निम्न मंत्र से संकल्प लें- ‘मम गेहे शीतलारोगजनितोपद्रव प्रशमन पूर्वकायुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धिये शीतलाष्टमी व्रतं करिष्ये’
  • इसके बाद विधि-विधान से तथा सुगंधयुक्त गंध-पुष्प आदि से माता शीतला का पूजन करें।
  • महिलाएं इस दिन मीठे चावल, हल्दी, चने की दाल और लोटे में पानी लेकर शीतला माता का पूजन करें।
  • पूजन के समय ‘-हृं श्रीं शीतलायै नमः’ मंत्र जपते रहें।
  • माता शीतला को जल अर्पित करने के पश्चात जल की कुछ बूंदे अपने ऊपर भी छिड़कें।
  • फिर एक दिन पहले बनाए हुए (ठंडे) खाद्य पदार्थों, मेवे, मिठाई, पूआ, पूरी, दाल-भात, मीठे चावल तथा गुड़-चावल के पकवान आदि का माता को भोग लगाएं।
  • तत्पश्चात शीतला स्तोत्र का पाठ पढ़ें और कथा सुनें।
  • माता शीतला का वास वटवृक्ष में माना जाता है, अतः इस दिन वट का पूजन करना ना भूलें।
  • तत्पश्चात माता को चढ़ाएं जल में से बह रहे जल में से थोड़ा जल अपने लोटे में डाल लें तथा इसे परिवार के सभी सदस्य आंखों पर लगाएं और थोड़ा जल घर के हर हिस्से में छिड़क दें, मान्यतानुसार यह जल पवित्र होने से इससे घर की तथा शरीर की शुद्धि होती है।
  • शीतला सप्तमी के दिन बासी भोजन को ही ग्रहण करें। ज्ञात हो कि इस व्रत के दिन घरों में ताजा यानी गर्म भोजन नहीं बनाया जाता है, अतरू इस दिन एक दिन पहले बने ठंडे या बासी भोजन को ही मां शीतला को अर्पित करने तथा परिवारसहित इसी भोजन को ग्रहण करने की परंपरा है।
    इस व्रत में चैत्र कृष्ण अष्टमी के दिन शीतल पदार्थों का मां शीतला को भोग लगाया जाता है। कलश स्थापित कर पूजन किया जाता है तथा प्रार्थना की जाती है कि- चेचक, गलघोंटू, बड़ी माता, छोटी माता, तीव्र दाह, दुर्गंधयुक्त फोड़े, नेत्र रोग और शीतल जनित सभी प्रकार के दोष शीतला माता की आराधना, पूजा से दूर हो जाएं।
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शीतला स्त्रोत का पाठ शीतल जनित व्याधि से पीड़ितों के लिए हितकारी है। स्त्रोत में भी स्पष्ट उल्लेख है कि शीतला दिगंबर है, गर्दभ पर आरूढ है, शूप, मार्जनी और नीम पत्तों से अलंकृत है। इस अवसर पर शीतला माता का पाठ करके निरोग रहने के लिए प्रार्थना की जाती है।
‘वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बरराम्घ्, मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालंकृतमस्तकाम्।’
इसी दिन संतानष्टमी का भी व्रत करने का विधान है। इसमें प्रातः काल स्नान आदि के बाद भगवान श्रीकृष्ण और माता देवकी का विधिवत पूजन करके मध्य-काल में सात्विक पदार्थों का भोग लगाना चाहिए। ऐसा करने से पुण्य ही नहीं मिलता बल्कि समस्त दुखों का भी निवारण होता है।

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