मथुरा का नाम लेने से ही मिल जाता यह फल…

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समाचार सच। आदियुग में भगवान वराह ने महासागर के जल में, जहां बड़ी उंची लहरें उठ रही थीं, डूबी हुई पृथ्वी को जैसे हाथी सूंड से कमल को उठा ले, उसी प्रकार स्वयं अपनी दाढ़ से उठाकर जब जल के ऊपर स्थापित किया, तब मथुरा के माहात्म्य को इस प्रकार वर्णन किया था. यदि मनुष्य मथुरा का नाम ले ले तो उसे भगवन्नामोच्चारण का फल मिलता है। यदि वह मथुरा का नाम सुन ले तो श्रीकृष्ण के कथा श्रवण का फल पाता है। मथुरा का स्पर्श प्राप्त करके मनुष्य साधु संतों के स्पर्श का फल पाता है। मथुरा में रहकर किसी भी गंध को ग्रहण करने वाला मानव भगवच्चरणों पर चढ़ी हुई तुलसी के पत्र की सुगंध लेने का फल प्राप्त करता है। मथुरा का दर्शन करने वाला मानव श्रीहरि के दर्शन का फल पाता है। स्वतः किया हुआ आहार भी यहां भगवान लक्ष्मीपति के नैवेद्य. प्रसाद भक्षण का फल देता है। दोनों बांहों से वहां कोई भी कार्य करके श्रीहरि की सेवा करने का फल पाता है और वहां घूमने फिरने वाला भी पग.पग पर तीर्थयात्रा के फल का भागी होता है।

जो राजाधिराजों का हनन करने वाला, अपने सगोत्र का घातक तथा तीनों लोकों को नष्ट करने के लिए प्रयत्नशील होता है, ऐसा महापापी भी मथुरा में निवास करने से योगीश्वरों की गति को प्राप्त होता है। उन पैरों को धिक्कार है, जो कभी मधुबन में नहीं गये। उन नेत्रों को धिक्कार है, जो कभी मथुरा का दर्शन नहीं कर सके। मथुरा में चौदह करोड़ वन हैं, जहां तीर्थों का निवास है। इन तीर्थों में से प्रत्येक मोक्षदाय है। मैं मथुरा का नामोच्चारण करता हूं और साक्षात मथुरा को प्रणाम करता हूं। जिसमें असंख्य ब्रह्माण्डों के अधिपति परिपूर्णम देवता गोलोनाथ साक्षात श्रीकृष्णचन्द्र ने स्वयं अवतार लिया, उस मथुरापुरी को नमस्कार है। दूसरी पुरियों में क्या रखा है? जिस मथुरा का नाम तत्काल पापों का नाश कर देता है, जिसके नामोच्चारण करने वाले को सब प्रकार की मुक्तियां सुलभ हैं तथा जिसकी गली.गली में मुक्ति मिलती है, उस मथुरा को इन्हीं विशेषताओं के कारण विद्वान पुरुष श्रेष्ठतम मानते हैं।

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यद्यपि संसार में काशी आदि पुरियां भी मोक्षदायिनी हैं, तथापि उन सब में मथुरा ही धन्य है, जो जन्म, मौंजीव्रत, मृत्यु और दाह संस्कारों द्वारा मनुष्यों को चार प्रकार की मुक्ति प्रदान करती है। जो सब पुरियों की ईश्वरी, व्रजेश्वरी, तीर्थेश्वरी, यज्ञ तथा तप की निधीश्वरी, मोक्षदायिनी तथा परम धर्मधुरंधरा है।

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जो लोग एकमात्र भगवान श्रीकृष्ण में चित्त लगाकर संयम और नियमपूर्वक जहां कहीं भी रहते हुए मधुपुरी के इस माहात्म्य को सुनते हैं, वे मथुरा की परिक्रमा के फल को प्राप्त करते हैं इसमें संशय नहीं है। जो लोग इस मथुराखण्ड को सब ओर सुनते, गाते और पढ़ते हैं, उनको यहीं सब प्रकार की समृद्धि और सिद्धियां सदा स्वभाव से ही प्राप्त होती रहती हैं। जो बहुत वैभव की इच्छा करने वाले लोग नियमपूर्वक रहकर इस मथुराखण्ड का इक्कीस बार श्रवण करते हैं, उनके घर और द्वार को हाथी के कर्णतालों से प्रताड़ित भ्रमरावली अलंकृत करती है। इसको पढ़ने और सुनने वाला ब्राह्म्ण विद्वान होता है, राजकुमार युद्ध में विजयी होता है, वैश्व निधियों का स्वामी होता है तथा शूद्र भी शुद्ध निर्मल हो जाता है। स्त्रियां हों या पुरुष, इसे निकट से सुनने वालों के अत्यन्त दुर्लभ मनोरथ भी पूर्ण हो जाते हैं। जो बिना किसी कामना के भगवान में मन लगाकर इस भूतल पर भक्ति भाव से इस मथुरा माहात्म्य अथवा मथुराखण्ड को सुनता है, वह विपन्नों पर विजय पाकर, स्वर्गलोक में अधिषतियों को लांघकर सीधे गोलोकधाम में चला जाता है।

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